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जीने की चाहत

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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खुश रहने के लिए बचपन कहां से लाऊँ,
दिखने सुंदर वो नैनो दरपन कहां से लाऊँ।
मौत से वास्ता रखे बगैर जीने की चाहत-
जिंदगी तेरे लिए वो समर्पण कहाँ से लाऊं॥

प्रेम दीप ज्योति पुंज उजाला फैलाती,
प्रेम झनकार वाद्य गूंज विश्वास जगाती।
द्वेष की अग्नि में जलती धरती हाहाकार-
प्रेम जल के छींटे द्वेष दावानल बुझाती।

गम नापने का नहीं कोई पैमाना होता है,
वक्त हिसाब इंसा अपना बेगाना होता है।
नजर ओ नजरिये की बात है अपनी-अपनी-
दर्द औरों का देख कोई दीवाना ही रोता है।

तेरी रूह जब छुए इश्क़ को,
मैं उस लम्हें की गवाह बनूँ।
जिन आँखों को नसीब हों-
नजदीकियाँ तेरी मैं वो निगाह बनूँ॥

लगते नैना टेशू पलाश हो,
बिखरी अलके मेध आभास हो।
देख तुम्हे लग रहे क्यो मुझको,
तुम जन्मों जन्मों की तलाश हो॥

बैठी दूर क्यों लगती पास हो,
हो मुखर तनी थोड़ी परिहास हो।
मौन खड़ी क्या क्या सोच रही हो-
बाले! बोलो तुम क्यों उदास हो॥

क्या हसीं इंकलाब लाता है,
हर दिन वो गुलाब लाता है।
अंधेरों से मैं डरती हूँ बहुत-
ढूंढ-ढूंढ आफताब लाता है॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।