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उपहार

वंदनागोपाल शर्मा ‘शैली’
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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सप्ताह में सिर्फ़ एक दिन ही वह अखबार मांगने आती थी…दिन रविवार!
वह आती जब बड़ी खुश दिखती थी…सुबह-सुबह चहकता-खिलखिलाता-सा उसका चेहरा दिनभर की ताजगी दे जाता था..। बच्चों के हॉस्टल चले जाने के बाद एक यही कभी-कभार दिख पड़ती थी…और बस उससे बात करना…बख्शी मैम को अच्छा लगता था।
“आन्टी! आज का रविवारीय अंक दीजिए न!” उसने कहा।
“मुझे तो पढ़ लेने दो,फिर आ जाना…। सुनो! शाम को आकर ले जाना…फिर भले ही मत लौटाना!” बख्शी मैम ने कहा।
“क्या मै हर रविवार ऐसा कर सकती हूँ!” उसने कहा।
“हाँ,हाँ…क्यों नहीं!”
‘ओके!’ कहकर वह चली गई।
शाम को फिर आ गई अखबार मांगने…।
“वो मेरी सहेली का कॉल आया था कि आज के अंक में मेरी कहानी छपी है…बस उसे ही देखना था…!” उसने कहा।
बख्शी मैम ने कहा-“ओह!,अब तक मैं यही समझ रही थी कि…तुम्हें भी मेरी तरह अखबार पढ़ने की लत है…मतलब तुम्हें भी कविताएं-कहानियां लिखना-पढ़ना पसंद है!”
बख्शी मैम आने वाले रविवार से रविवारीय अंक की २ प्रतियां मंगाने लगी…और एक प्रति उसे उपहार स्वरूप देने लगी।

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