अरशद रसूल,
बदायूं (उत्तरप्रदेश)
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पर्यावरण को बचाना जीवन बचाने के बराबर है। इस जीवन के लिए जल संरक्षण बहुत जरूरी हो गया है। जल संरक्षण को ध्यान में रखकर उत्तर प्रदेशविधानसभा अध्यक्ष के
आदेश के अनुपालन में एक आदेश जारी
किया गया था। इसके तहत सरकारी कार्यालयों में आने वाले लोगों को आधा
गिलास पानी दिया जाए। बाद में मांगे जाने पर अतिरिक्त पानी दिया जा सकता है। तर्क यह था कि जब प्यास लगती है तो हर इंसान पूरा गिलास पानी नहीं पीता। इस स्थिति में बचा हुआ आधा गिलास पानी फेंकना पड़ता है। चूंकि,उत्तरप्रदेश एक बड़ा राज्य है,इसलिए यहां विधानसभा और अन्य सरकारीकार्यालयों में आने-जाने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है। इस स्थिति में अनुमान लगाया जा सकता है कि आधे लोग भी आधा गिलास पानी फेंक दें,तो एक बहुत बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी होगी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह प्रयास वाकई बहुत ही काबिले तारीफ है। इस आदेश को पूरे उत्तर प्रदेश सरकार में भी लागू करना चाहिए। या यूँ कहा जाए कि,इससे पूरे देश को सीख लेनी चाहिए और इस आदेश को लागू करना चाहिए। यह प्रयास जल संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
इसके अलावा विचारणीय यह भी है कि,जल संरक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं है,हम सबके संयुक्त प्रयास के बिना यह संभव नहीं है। हमें भी चाहिए कि,सरकार की कोशिशों से अलग हटकर रोजमर्रा की
जिंदगी में जल संरक्षण का प्रयास करें।
दैनिक जीवन में तमाम काम ऐसे हैं जो थोड़ी -सी जागरूकता से किए जा सकते हैं। हम सबकी भागीदारी,प्रयास और अंदरूनी इच्छाशक्ति के बगैर यह काम नहीं हो सकता।
अक्सर देखने में आता है कि,पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी आम आदमी ही करता है। घरों में झाड़ू-पोंछा,सफाई,नहाने,कपड़े धोने आदि रोजमर्रा के कामों में बेतहाशा पानी खर्च किया जाता है। वाशिंग मशीन से कपड़े धोने में कितना पानी खर्च या यूँ कहें बर्बाद
होता है,शायद हम इसका अंदाज भी नहीं
लगा पाते। पिछले एक-डेढ़ दशक से भौतिक सुख-सुविधाओं और ऐशो-आराम की चीजों में बेतहाशा इजाफा हुआ है। इसमें सबमर्सिबल पम्प भी है। छोटे और मझोले शहरों के बाद अब यह चलन गाँव में भी शुरू हो चुका है। अपना अलग पम्प लगवाने का एक चलन चल पड़ा है। हर परिवार अपने घर में अपना अलग पम्प लगवा चुका है या इसकी कोशिश में लगा हुआ है। यह पम्प पानी की बर्बादी में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।देखा यह भी जाता है कि,टैंक भरने के बाद
बहुत देर तक मोटर चलता रहता है और पानी यूँ ही नाली में बहता रहता है। तमाम लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अच्छी मात्रा में पानी मुहैया हो रहा है। ऐसे लोग अपने घर के सामने,गली में,सड़क पर पानी का छिड़काव करते हैं। इससे पानी की बेतहाशा बर्बादी हो रही है। भविष्य के लिए यह एक खतरे की निशानी है। अभी भी समय है जल
संरक्षण के प्रति हमें चेत जाना चाहिए, वरना आने वाले दिनों में हमारे यहां भी वही हालात होंगे,जो सूखाग्रस्त क्षेत्रों केहैं।अपने हाथों अपनी बर्बादी की इबारत न लिखी जाए,यही बेहतर होगा,वरना आने
वाली पीढ़ियों को जवाब भी देते नहीं बनेगा।
इन उपायों के जरिए पानी बचाया जा सकता है-नहाने के लिए पानी भरकर ही इस्तेमाल करें,सीधे नल से पानी ज्यादा बर्बाद होता है,रोजाना घर धोने के बजाय पोंछा लगाना बेहतर होगा। जरूरत पड़ने पर बाल्टी-मग की मदद से फर्श धोया जा सकता है। इस तरीके से पानी कम बर्बाद होगा। कपड़े धोते समय उन्हें खंगालने के लिए बर्तन का प्रयोग करना बेहतर होगा। सीधे नल की धार के नीचे कपड़े खंगालने में पानी की बर्बादी ज्यादा होती है। बर्तनों को धोने में भी पहले भरे हुए
पानी का, बाद में नल का उपयोग किया जाएतो पानी की बचत हो सकती है।घर में अगर सबमर्सिबल पम्प लगा हुआ है,तो इस बात का खास ध्यान रखा जाए कि,पानी की बर्बादी न हो। इसके लिए जरूरी है कि टैंक ओवरफ्लो की सूचना हेतु एक घंटी (बजर)लगाई जा सकती है। घंटी के जरिए टैंक भरने से पहले ही हमें पता लग जाएगा
और एक बूंद पानी भी फालतू नहीं गिरेगा।अपने घर के सामने गली में या सड़क पर छिड़काव लगाने वालों को चाहिए कि वहइससे बचें। बेवजह सड़क पर छिड़काव
करने से पानी की बर्बादी के अलावा कुछ
हासिल नहीं होगा। रोजमर्रा के कामों से निकलने वाले अपशिष्ट पानी को क्यारियों या खेतों का छिड़काव करने में इस्तेमाल
किया जा सकता है। अगर आपकी इमारत बड़ी है या किसी ऐसे कार्यालय-संस्थान में काम करते हैं,जहां इमारत बहुत ज्यादा बड़ी है तो कोशिश करें कि वहां वर्षा जल पुनर्भरण तंत्र लगाया जाए। इसके लिए सरकार प्रोत्साहन दे रही है।अपने घर के आसपास,कार्यालय या अन्य
खाली जगहों पर पौधारोपण करके भी जल संरक्षण के साथ पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
परिचय-अरशद रसूल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला बदायूं (उ.प्र.)में है। ८ जुलाई १९८१ को जिला बदायूं के बादुल्लागंज में जन्मे अरशद रसूल को हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी, संस्कृत एवं अरबी भाषा का ज्ञान है। एमए, बीएड,एमबीए सहित ग्रामीण विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा,मुअल्लिम उर्दू एवं पत्रकारिता में भी आपने डिप्लोमा हासिल किया है। इनका कार्यक्षेत्र-संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ईविन परियोजना में (जिला प्रबंधक) है। सामाजिक गतिविधि में आप संकल्प युवा विकास संस्थान के अध्यक्ष पद पर रहते हुए समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों के खिलाफ मुहिम, ‘कथित’, संकुचित धार्मिक विचारधारा से ऊपर उठकर देश और सामाजिकता को महत्व देने में सक्रिय होकर रचनाओं व विभिन्न कार्यक्रमों से ऐसी विचारधारा के लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही स्वरोजगार,जागरूकता, समाज के स्वावलंबन की दिशा में विभिन्न प्रशिक्षण-कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। आपकी लेखन विधा-लघुकथा, समसामयिक लेख एवं ग़ज़ल सहित बाल कविताएं हैं। प्रकाशन के तौर पर आपके नाम -शकील बदायूंनी (शख्सियत और फन),सोजे वतन (देशभक्ति रचना संग्रह),प्रकाशकाधीन संकलन-कसौटी (लघुकथा),आजकल (समसामयिक लेख),गुलदान (काव्य), फुलवाऱी(बाल कविताएं)हैं। कई पत्र-पत्रिका के अलावा विभिन्न अंतरजाल माध्यमों पर भी आपकी रचनाओं का प्रकाशन जारी है। खेल मंत्रालय(भारत सरकार)तथा अन्य संस्थाओं की ओर से युवा लेखक सम्मान,उत्कृष्ट जिला युवा पुरस्कार,पर्यावरण मित्र सम्मान,समाज शिरोमणि सम्मान तथा कलम मित्र सम्मान आदि पाने वाले अरशद रसूल ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-बहुधा आकाशवाणी से वार्ताओं-रचनाओं का प्रसारण है। लेखनी का उद्देश्य-रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष तीसरी आँख के रूप में कार्य करना एवं कुरीतियों और ऊंच-नीच को मिटाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर,मुशी प्रेमचंद, शकील बदायूंनी एवं डॉ. वसीम बरेलवी तो प्रेरणापुंज-खालिद नदीम बदायूंनी,डॉ. इसहाक तबीब,नदीम फर्रुख और राशिद राही हैं। आपकी विशेषज्ञता-सरल और सहज यानी जनसामान्य की भाषा,लेखनी का दायरा आम आदमी की जिन्दगी के बेहद करीब रहते हुए सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“भारत एक उपवन के समान देश है,जिसमें विभिन्न भाषा, मत,धर्म के नागरिक रहते हैं। समता,धर्म और विचारधारा की आजादी इस देश की विशेषता है। हिन्दी आमजन की भाषा है, इसलिए यह विचारों-भावनाओं की अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट माध्यम है। इसके बावजूद आजादी के ६० साल बाद भी हिन्दी को यथोचित स्थान नहीं मिल सका है। इसके लिए समाज का बुद्धिजीवी वर्ग और सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं। हिन्दी के उत्थान की सार्थकता तभी सिद्ध होगी,जब भारत में हिन्दी ऐसे स्थान पर पहुंच जाए,कि हिन्दी दिवस मनाने की जरूरत नहीं रहे।”