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प्रकृति से मित्रता के रिश्ते को समझना होगा,बचाना होगा

गुलाबचंद एन.पटेल
गांधीनगर(गुजरात)
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मानव जीवन में कुछ लोग जीवन यात्रा को आनंदमयी यात्रा मानते हैं,जबकि कुछ लोग दुखद मानते हैं। वे जरा-सा भी संकट आए तो दुखी हो जाते हैं। इंसान को हर पल चलते रहना चाहिए।
मानवीय जीवन के साथ प्रकृति जुड़ी हुई है। प्रकृति से ही मानव का जीवन चलता है। हवा,पानी,अन्न सब चीजें हमें प्रकृति से ही प्राप्त होती हैं। वृक्षों से पर्यावरण का जतन होता है। वृक्ष हमें छाया तो दे ही रहे हैं,फल और लकड़ी भी देते हैं। हरित वनस्पति, फलदार,फूलदार और छायादार वृक्ष से लोगों को बहुत प्यार होता है। प्राकृतिक एवं मानव निर्मित सौन्दर्य और उसकी साज-सज्जा करते हुए लोगों को बहुत अच्छा लगता है।
प्रकृति जीवन है। प्रकृति जब करवट बदलती है,तो मानवीय जीवन दुश्कर बन जाता है। मानव जीवन में दु:ख का आगमन होता है। जब भूकम्प आता है,तब देखा होगा कि बहुत सारे मकान गिर जाते हैंl वृक्ष गिर पड़ते हैं, बारिश होती है,बिजली चली जाती है,जमीन में गड्ढे हो जाते हैं तथा लोग मलबे में दब जाते हैंl कुछ लोग मकान गिरते ही उसी के साथ मर जाते हैं। बचाव टुकड़ियां मलबे से लोगों को बाहर निकालती हैl कुछ लोग बच जाते हैं,और अन्न के लिए तरसते हैं। सब-कुछ तहस-नहस हो जाता है। इंसान परेशान हो जाता है। अपनी ज़िंदगी दोबारा संवारने की कोशिश करता है।
हिमालय की बात करें तो,हिमालय के सूर्य हिममंडित सदाबाहर शिखरों पर रुद्र का जो अट्टाहास होता है,तो अपने नीचे की प्रकृति को बराबर आशीर्वाद देते रहने पर समय-समय पर उसका उपहास भी करता है। उसका वह ‘अट्टा‘ स्वर अन्तः प्रकृति में निरन्तर गूँजता रहता है,पर वह स्वर एक एक क्षण के लिए भी कभी भ्योत्पादक नहीं लगता,बल्कि उसके भीतर निरन्तर हिमालय की बेटी पार्वती और दामाद शिव का आशीर्वाद ही विभिन्न जाति के फूलों की तरह रंग बिखेरता है,वह खिलता हुआ लगता रहता है।
इंसान जन्म से लेकर मृत्यु तक दौड़ता है,और दौड़ते-दौड़ते ही दम तोड़ देता है। आज-कल वृक्षों की कटौती ज्यादा होती है,विकास के नाम पर पेड़ काटे जाते हैं। जंगल सब शहर और शहर जहर हो गए हैं। मानव ज़िंदगी का कोई ठिकाना नहीं है,मौत कभी भी आ सकती है। प्राकृतिक आपदा बढ़ गई है। ‘सुनामी’ तूफान आता है तो,सब-कुछ बहाकर अपने साथ ले जाता है। वातावरण खराब हो जाता है और विषाणु भी फैलते हैं। जैसे, आजकल ‘कोरोना’ वाइरस चल रहा है। चीन के वुहान शहर से निकले विषाणु ने आज पूरे विश्व में आतंक मचा दिया है। प्रकृति में बदलाव इतना कठिन साबित होता है कि, इंसान ज़िंदगी हार जाता है। पूरी अर्थ व्यवस्था टूट जाती है।
नियमानुसार,पर्यावरण के जतन के लिए किसी भी राज्य का कुल विस्तार के भौगोलिक विस्तार के १० प्रतिशत प्रतिशत वृक्ष होना जरूरी है। प्रकृति पर्यावरण और वन्य सृष्टि के वन्य जीवों के प्रति लोगों का प्रेम सदभावना गहरी हो,इसलिए वन विभाग (भारत सरकार) और राज्यों में विभिन्न कार्यक्रम एवं शिविरों का आयोजन होता है।
मानव को समझना होगा कि,प्रकृति ही ईश्वर है। मंदिर में रखी गई ईश्वर की मूर्ति भी प्रकृति है। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत ही गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य सदियों से प्रकृति की गोद में फलता-फूलता आ रहा है। प्रकृति और मनुष्य का संबंध माँ और उसकी संतान के रूप में है। मनुष्य,प्रकृति का ही अंग है। प्रकृति की रक्षा करना मानव का धर्म है। कुछ दिनों से दुनिया में पर्यावरण के विनाश को लेकर काफी चर्चा हो रही है। मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी के वायु मण्डल में बदलाव हो रहा है। पर्यावरण की सुरक्षा से ही मानव सुरक्षा होती है। मनुष्य के लिए सागर,नदी का पानी और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। जीवन के लिए उसके घर का आँगन आसमान है,और उस छत में सूर्य-चन्द्र-तारे मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु कोई और नहीं हो सकता है।
सदियों से मानव और प्रकृति का संबंध जुड़ा हुआ है। प्रकृति के सौन्दर्य से मुग्ध होकर कोई कविता लिखता है तो मानव अपने भाव अभियक्त करने के लिए प्रकृति की ओर देखता है। कहना गलत नहीं होगा कि,प्रकृति की रक्षा मानव की सुरक्षा है। आज प्रकृति
पर खतरा मंडरा रहा है। तालाबों को बंद करके बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल बन रहे हैं। जंगल काटकर प्रकृति के जीवन को नष्ट किया जा रहा है।
शायद हम भूल गए हैं कि,पृथ्वी ही हमारी सब-कुछ है। पृथ्वी,प्रकृति, वायु,नदियों के बिगड़ने से धरती पर रहने वाले अरबों लोग मर सकते हैं। प्रकृति की रक्षा करना मानव धर्म है,पर आज हर इंसान प्रकृति का नाश करने पर तुला हुआ है। प्रकृति की रक्षा करना ही हमारा धर्म एवं दायित्व है।आसपास का पर्यावरण जितना स्वच्छ होगा, तन-मन की शांति में उतना ही वो सहायक होगा। सृष्टि का आदर करना ईश्वर का आदर करने के बराबर है,पर आज प्रकृति के लिए दूसरी स्थिति बन गई है। हमने प्रकृति का इतना दोहन कर दिया है कि,इसने अपना मैत्री भाव छोड़ दिया है।
मनुष्य का जन्म प्रकृति के गर्भ से हुआ है और प्रकृति ने मनुष्य को सब-कुछ दिया है, जो मनुष्य को चाहिए था,पर मनुष्य ऐसा स्वार्थी है,जो उसकी परवाह नहीं कर रहा है। गुजरात में एक प्रकृति उद्यान है। एक भजन में यहां नींबू के वृक्ष के माध्यम से उसका महत्व संजोया गया है। ऐसे नींबू के बाग में गोपियों द्वारा कृष्ण को न्योता दिया जाता है। मनुष्य और प्रकृति के बीच यही संबंध है कि, मनुष्य प्रकृति का एक अंग है। पेड़-पौधे हमें साँस लेने के लिए ऑक्सीज़न देते हैं,यह एक उसका उदाहरण है।
‘मत्स्यपुराण’ में १ वृक्ष को १०० पुत्रों के समान होने की बात कही गई है। यानी
मनुष्य के जन्म के साथ ही उनका प्रकृति से अटूट नाता जुड़ जाता है। कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि,प्रकृति से मित्रता के रिश्ते को समझना होगा,प्रकृति को बचाना होगा। प्रकृति मनुष्य के जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है,इसलिए आओ प्रकृति का जतन करें।

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