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ये कैसी आपदा…!

सुजीत जायसवाल ‘जीत’
कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
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सहम गया हूँ देख कर छवि ये भावुकता से भर देय,
काल ‘कोरोना’ के समय हाय रे बिटिया ही कांधा लेय…
कण-कण वासी राम जी ये कैसी अब आपदा दीन,
एक-एक कर अपने ही अपनों के बिन नौका खेय।

माना मृत्यु का रूप विकट है पर ये संताप चरम है,
बिन आक्सीजन निकलते प्राण-मृत्यु मेरा भरम है…
त्राहि-त्राहि सी मची है रघुवर मानव अब आपा खोए,
बिन अपनों के जले चिता,मुझे लिखते शरम है आए।

साहित्य समाज का दर्पण होता सुख दुःख में हो संगी,
आज अचानक बीमार हुए जिनकी तबीयत थी चंगी…
हास्य,श्रृंगार मैं कैसे लिखूं कृपा कर हे करुणासागर,
वो निर्धन था दीन-हीन,जिसे कफ़न मिला बस लुंगी॥

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