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सामूहिक प्रतिरोधकता के भरोसे तो पूरा भारत कोरोनामय हो जाएगा

प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)

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भारत में जैसे-जैसे कोरोना का प्रसार तेज हो रहा है,तो सामूहिक प्रतिरोधकता(हर्ड इम्यूनिटी) को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। यानी अगर लगभग ७०-९० फीसद लोगों में बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए,तो बाकी भी बच जाएंगे, लेकिन इसके लिए टीका(वैक्सीन)जरूरी है। क्या कोरोना के वैक्सीन की अनुपलब्धता में उक्त प्रतिरोधकता अपना काम कर पाएगी ?
कोरोना की शुरुआत में ब्रिटेन ने सामूहिक प्रतिरोधकता का प्रयोग करने की कोशिश की। हालांकि,वहां के ३०० से अधिक वैज्ञानिकों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया और कहा कि सरकार को सख्त प्रतिबंधों के बारे में सोचना चाहिए,ना कि ‘सामूहिक प्रतिरोधकता’ जैसे विकल्प के बारे में,जिससे बहुत सारे लोगों की जान को अनावश्यक खतरा हो सकता है,मगर ब्रिटेन की सरकार ने कुछ दिनों तक अपने प्रयोग जारी रखे और वहां कोरोना ने भीषण तबाही मचाई।
विषेषज्ञों के मुताबिक कोरोना विषाणु से लोगों के बीच सामूहिक प्रतिरोधकता तभी विकसित होगी,जब तकरीबन ६० प्रतिशत जनसंख्या संक्रमित हो चुकी होl हालांकि,इस इस आँकड़े को लेकर भी अभी तक सभी विशेषज्ञ में एक राय नहीं हैl इस वक्त पूरी दुनिया में सिर्फ एक देश स्वीडन ही है,जो उक्त प्रतिरोधकता के प्रयोग पर काम कर रहा हैl
शुरू-शुरू में स्वीडन को इसमें कुछ सफलता भी मिलती दिखी,लेकिन अब वहां कोरोना के मामले जोरों पर हैं। दरअसल,सामूहिक प्रतिरोधकता की जरूरी शर्त टीकाकरण है, जिससे लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अभी पूरे यकीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि,नए कोरोना मरीजों के ठीक होने के बाद उनके शरीर में जो एंटीबॉडी बनी है,वह उन्हें दोबारा इस विषाणु के संक्रमण से बचा पाएगी भी या नहीं।
सामूहिक प्रतिरोधकता के वैज्ञानिक के अनुसार अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है,तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है,जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैंl वो उस बीमारी से ‘प्रतिरोध’ हो जाते हैं,यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैंl मतलब यह है कि,व्यक्ति को संक्रमण हुआ और उसके बाद उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ने विषाणु का मुक़ाबला करने में सक्षम एंटी-बॉडीज़ तैयार कर लियाl जैसे-जैसे ज़्यादा लोग प्रतिरोधक होते जाते हैं,वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का ख़तरा कम होता जाता हैl
चीन ही नहीं,भारत में भी कोरोना के वापसी हमले देखने को मिल रहे हैं,लेकिन सच यही है कि सामूहिक रोग प्रतिरोध क्षमता का अभाव ही महामारी का विस्तार करता है। महामारी विज्ञान के अनुसार किसी रोग का फैलाव विषाणु या जीवाणु की मारक शक्ति और मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति पर निर्भर है। जिन्हें रोग का टीका या दवा मिल चुकी है,उनका और संक्रमित लोगों का अनुपात और वातावरण की स्वच्छता रोग के प्रसार के निर्णायक पहलू हैं। अगर मारक क्षमता मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति की अपेक्षा कमजोर है,तो रोग उत्पन्न नहीं होता।अगर दोनों की शक्ति समान है,तो कुछ नहीं होता। जब किसी एक पक्ष की शक्ति में अपेक्षाकृत वृद्धि हो जाती है,तब संघर्ष शुरू हो जाता है। महामारी का प्रकोप होने पर या तो लोग संक्रमित होकर मरते हैं,या निरोग हो जाने पर प्रतिरक्षित हो जाते हैं। ठीक होने वालों की संख्या बढ़ने से रोग प्रतिरोधी व्यक्तियों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है। ऐसा होते-होते एक दिन रोग प्रतिरोधक लोगों की संख्या रोगियों की संख्या से ज्यादा हो जाती है और महामारी शांत हो जाती है। यही सामूहिक प्रतिरोधकता का आधार है।
अभी तक कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे थे,लेकिन हाल में ही दुनिया भर में लगभग ७९ लाख मामलों में ४० लाख लोगों के ठीक होने के भी समाचार आए हैं। भारत अपने आँकड़ों के जरिए ५० फीसद स्वस्थता दर बता रहा है तो अमेरिका ४१ फीसद,चीन ९०, जर्मनी ९१,इटली ७४ और फ्रांस ४६ प्रतिशत के आसपास बता रहे हैं। ये आँकड़े भी कुल संक्रमित लोगों की तुलना में हैं,न कि कुल आबादी की तुलना में,जबकि सामूहिक प्रतिरोधकता कुल आबादी की अवधारणा पर काम करती है,लेकिन इसका कोई जवाब नहीं है कि टीके की अनुपलब्धता में यह काम कैसे आएगी ?
दुनियाभर में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या ६० लाख को पार कर गई है,लेकिन अभी तक इसकी कोई सटीक दवा या फिर टीका विकसित नहीं हो पाया हैl एक रिपोर्ट कहती है कि,संक्रमितों की संख्या,प्रदर्शित किए आँकड़ों से कहीं ज्यादा हो सकती हैl दवा न मिलने की वजह से माना जा रहा है कि,कोरोना अभी बना रहेगा,पर इसके बावजूद सामूहिक प्रतिरोधकता से दुनिया अभी बहुत दूर हैl
हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के निदेशक आशीष झा ने कहा-मैं भारत में बढ़ रहे मामलों से चिंतित हूँ। ऐसा नहीं है कि कोरोना उच्च पर पहुंचने के बाद अपने-आप कम हो जाएगा। उसके लिए आपको कदम उठाने होंगे। भारत सामूहिक प्रतिरोधकता विकसित करने के लिए ६० फीसदी आबादी के संक्रमित होने का इंतजार नहीं कर सकता है। इससे लाखों लोगों की मौत होगी और यह कोई स्वीकार्य हल नहीं है।

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