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हाँ,मैं लौट जाना चाहती हूँ

कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
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लौट जाना चाहती हूँ
कहीं दूर उस नीले आकाश तले,
जिसकी छाया तले मैं अपने भावों को ऊपर उठता देख सकूँ।

लौट जाना चाहती हूँ धरा की उन गहराइयों में,
जहाँ में अपने मन की गहराइयों में डूब सकूँ।
लौट जाना चाहती हूँ दूर कहीं,
समुन्दर में उठती उन मौजों के किनारों के नजदीक
जहाँ घंटो बैठ मैं अपने अंदर उठते द्वन्द को शीतल कर सकूँ,
और अपने अंदर की धधकती ज्वाला को शान्त कर सकूँ।

लौट जाना चाहती हूँ उस जहाँ में,
जो सारे बन्धनों और पाबंदियों से मुक्त हो।
जहाँ न कोई बड़ा हो न छोटा,
न नफरतों के पहाड़ हो,न ईर्ष्या-द्वेष की तपिश
जहाँ सिर्फ और सिर्फ आवाज हो तो श्वांसों के स्पन्दन की,
दिल के धड़कने का एहसास हो
पक्षियों के कलरव संग जुड़,
खुद में खो जाने का आभाष हो।

हवाओं का शीतल स्पर्श हो,
जिसे छूकर तन खिल जाए
हाँ मैं लौट जाना चाहती हूँ उस जहाँ में,
जहाँ न मेरा मैं मुझसे कोई सवाल उठाए
थक चुकी हूँ इन हजारों रंगों में सजकर,
कभी माँ,बहन,पत्नी तो कभी बहू बनकर
लेकिन दुनिया को न एक भी रास आए।
बेवजह जोड़ कर जज्बातों की डोर,
अब न मैं दिल को रुलाना चाहती हूँ।

लौट जाना चाहती हूँ मैं अब उस जहाँ में,
जहाँ मैं खुद को जवाब दे सकूँ
अपने ही साथ की गई नाइंसाफियों का,
हिसाब दे सकूँ।

इसका ये पर्याय नहीं कि,
मैं भाग जाना चाहती हूँ जिम्मेवारियों से
या मर जाना चाहती हूँ!
डर कर कठिनाईयो से।

मैं कुछ पल ठहर जाना चाहती हूँ,
अपने ही मन के गलीचे से वो सारी झूठी हँसी
और हमदर्दियों की तस्वीरों को हटा,
कभी न मिटने वाली अटल अक्षम्य
उस ईश्वर से जुड़ी सारी तस्वीरों को,
सजाना चाहती हूँ।

हाँ,मैं लौट जाना चाहती हूँ,
जिन्दगी के चन्द पलों को
शून्य की तरह समेट
लेकिन विस्तृतता के मायने संजो,
परम शान्ति को छू जाना चाहती हूँ।
हाँ,मैं लौट जाना चाहती हूँ॥

परिचय-कविता जयेश पनोत का बसेरा महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई स्थित खारकर अली रोड पर है। १ फरवरी १९८४ को क्षिप्रा (देवास-मप्र)में जन्मीं कविता का स्थाई निवास मुम्बई ही है। आपको हिन्दी,इंग्लिश, गुजराती सहित मालवी भाषा का ज्ञान भी है। जिला-ठाणे वासी कविता पनोत ने बीएससी (नर्सिंग-इंदौर,म.प्र.)की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्य क्षेत्र-नर्स एवं नर्सिंग प्राध्यापक का रहा,जबकि वर्तमान में गृहिणी हैं। लेखन विधा-कविता एवं किसी भी विषय पर आलेखन है। १९९७ से लेखन में रत कविता पनोत की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। फिलहाल स्वयं की किताब पर काम जारी है। श्रीमती पनोत के लेखन का उद्देश्य-इस रास्ते अपने-आपसे जुड़े रहना व हिन्दी साहित्य की सेवा करना है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक,कोई एक नहीं, सब अपनी अलग विशेषता रखते हैं। लेखन से जन जागरूकता की पक्षधर कविता पनोत के देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
‘मैं भारत देश की बेटी हूँ,
हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा
हिन्दी मेरी मातृ भाषा,
हिन्द प्रचारक बन चलो,
कुछ सहयोग हम भी बाँटें।

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