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श्रमिकों से ही विकास

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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‘श्रमिक दिवस विशेष (१मई)’

“श्रमिकों का सम्मान हो, हों पूरे अरमान।
यही आज आवाज़ है, यही आज आह्वान॥”

    अमेरिका में मजदूर दिवस शुरू होने के ३४ साल बाद १ मई १९२३ को भारत में भी ‘मजदूर दिवस’ की शुरुआत हुई। भारत में पहली बार मजदूर दिवस चेन्नई में शुरू हुआ।लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में यह फैसला लिया गया। इस बैठक को कोई सारे संगठनों और सोशल पार्टी ने समर्थन दिया। आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे वामपंथी मजदूरों पर अत्याचारों और शोषण के खिलाफ यह आवाज उठा रहे थे।
मजदूर दिवस का उद्देश्य यह है कि मजूदरों और श्रमिकों की उपलब्धियों का सम्मान किया जाए और अधिकार की लड़ाई लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले लोगों के योगदान को याद किया जाए, साथ ही हमेशा मजदूरों के अधिकारों की आवाज को बुलंद किया जाए। यही कारण है कि बहुत सारे संगठनों में कर्मचारियों को इस दिन छुट्टी भी दी जाती है।
  देखा जाए तो हमारे देश में अनेक महत्वपूर्ण कार्य मजदूरों द्वारा ही किए जाते हैं। जैसे-  उद्‌योग, व्यापार,कृषि, भवन निर्माण,सरकारी कार्यालयों का निर्माण, पुल एवं सड़कों का निर्माण आदि मजदूरों द्वारा ही संपन्न किए जाते हैं। मजदूर पर देश निर्भर होता है, और मजदूर स्वयं की मेहनत पर निर्भर होता है।मजदूर सारे दिन कठिन परिश्रम कर अपना पेट भरता है।
   आज के इस युग में हर व्यवसाय में आय बहुत ज्यादा होती है, पर आश्चर्यजनक बात ये है कि सबसे कठिन परिश्रम करने वाले मजदूर की आय बहुत कम होती है। मजदूर कठोर मेहनत करने के बावजूद भी अपने परिवार का लालन-पालन भी मुश्किल से कर पाता है। मजदूर जब तक अपने बल पर कार्य करता है, तब तक वह अपना जीवन आसानी से व्यापन कर लेता है, पर जब वे वृद्ध या निर्बल हो जाते हैं, तब स्थिति बहुत ख़राब हो जाती है। उस समय उन्हें भूखा रहना पड़ता है। मजदूर अपने सम्पूर्ण जीवन में देश की सेवा करता है, पर मजदूर को देश की तरफ से कोई सुरक्षा या सहायता नहीं मिलती।
    ये सारी बातें चिंता व चिंतन का विषय है। मजदूरों के परिवार की भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की समुचित व्यवस्था हो, यह भी अति आवश्यक है। श्रमिक दिवस सारे देश का ध्यान इस ओर आकर्षित करता है। यह सच है कि, श्रमिकों से ही देश का विकास संभव है।
 “जो श्रम करके नित कर रहे, रोज़ाना निर्माण।

वे ही महनतकश बने, नित विकास के प्राण॥”

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।