पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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दीप जलें, मन महके (दीपावली विशेष)…
आलोक पर्व अंधकार से प्रकाश का पर्व है। यह पर्व-त्यौहार आशा और सकारात्मकता के साझा उत्सव में विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एकजुट करता है। इस आलोक पर्व की जीवंत सजावट, आतिशबाजी और सामुदायिक दावतों से समाज में एकता और एकजुटता की भावना को बढ़ावा मिलता है। यह पर्व पूरे भारत में विविध रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जो देश के समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने को दर्शाता है। प्रत्येक क्षेत्र त्यौहार में अपने अनूठे स्वाद को जोड़ कर इसे अपने रंग में रंग देता है, जिससे यह उत्सव वास्तव में अखिल भारतीय उत्सव बन जाता है।
आलोक पर्व सिर्फ एक त्यौहार से कहीं अधिक है, यह एक विशेष सांकृतिक और आध्यात्मिक अनुभव है, जो आत्मनिरीक्षण और जीवन में नैतिक विकास को प्रोत्साहित करता है। यह प्रतिकूलता के खिलाफ प्रेम, एकता और आपसी संबंधों में लचीलेपन के सिद्धांतों का प्रतीक पर्व है। जब परिवार दीए जलाने और मिठाई बाँटने के लिए इकट्ठा होता है, तो वे ना केवल अपनी प्राचीन परंपराओं का सम्मान करते हैं, वरन जीवन में करूणा और समता से निर्देशित जीवन जीने की अपनी प्रतिबद्धता को भी मजबूत करते हैं।
आलोक पर्व जीवन में अंधकार से प्रकाश की जीत का संदेश देता है, जो समाज के सभी समुदायों और वर्गों का समान रूप से उज्जवल भविष्य की ओर मार्ग प्रशस्त करता है।
आलोक पर्व को सामान्य रूप से दीपावली के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार भारतीय संस्कृति का गौरव है, क्योंकि दीपावली रोशनी का पर्व है और दीया प्रकाश का प्रतीक है एवं तमस या अंधकार को दूर करता है। यही दीया हमारे जीवन में रोशनी के अलावा जीवन के लिए सीख भी है और जीवन निर्वाह का साधन भी है। दीया भले ही मिट्टी का हो, परंतु वह हमारे जीवन का आदर्श है। जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम भी है।
आलोक पर्व मनाने की सार्थकता तभी है, जब हमारे अंतर्मन का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन के लिए समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश आवश्यक होता है।
पुरातन काल से मनुष्य प्रकाश की खोज में लगा रहा है। अग्नि को बचाए रखने के तमाम उपायों में दीप सबसे आसान और सरल उपाय था। जब अग्नि की आवश्यकता होती, तो बाती से बाती को मिला दिया जाता था। आलोक पर्व एक है, परंतु उसके पर्याय अनेक हैं। इस पर्व का स्वागत् हर भारतीय अत्यंत उल्लास और उमंग से करता है।
शोषित और दमित समाज में समानता का वातावरण बन पाए, अपना उजाला वंचितों और अभावग्रस्तों तक फैला सके, मनुष्य मात्र में रोशनी का दिव्यबोध जगा सके, तभी वह सच्चे मायने में आलोक पर्व है।
आलोक पर्व अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की आध्यात्मिक विजय का प्रतीक है। आलोक पर्व का प्रकाश हमारी सभी अंधेरी इच्छाओं और बुरे विचारों को नष्ट करने, अंधकार और बुराइयों को समाप्त करने का समय दर्शाती है।
आलोक पर्व जीवन में सद्भावना के साथ आगे बढ़ने की शक्ति और उत्साह देता है। आलोक पर्व को यानी दीपावली का अर्थ है–दीपों की पंक्तियाँ। अर्थात् दीपों का पर्व, जो अज्ञानता और नकारात्मकता के अंधकार को दूर करने का प्रतीक है। दीपावली को कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। पौराणिक आदेशों के अनुसार यह पाँच दिनों का त्यौहार है और प्रत्येक दिन के उत्सव का धर्मों और रीतियों के अनुसार अलग-अलग महत्व है। दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा करने का प्रावधान है। मान्यता है कि लक्ष्मी पूजन से गृह धन-धान्य और समृद्धि से भरा रहता है। माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए नहीं, वरन् आत्मिक समृद्धि और आत्मिक शांति के लिए भी की जाती है।
आलोक पर्व का संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के १४ वर्ष के वनवास पश्चात् अयोध्या लौट आने की खुशी में अमावस्या की रात के अंधकार को दीप प्रज्जवलित करके अयोध्या वासियों द्वारा अपनी प्रसन्नता व्यक्त करना भी है।
आलोक पर्व एक प्रकार से सामाजिक पर्व है, क्योंकि समाज के विभिन्न संप्रदायों के लिए इसका भिन्न-भिन्न महत्व है। आलोक पर्व पर घर की सफाई बाहरी के साथ- साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है। शिक्षा एवं साहित्य- संस्कृति के विचारकों का कहना है, कि हमें आलोक पर्व जैसे पावन त्यौहार के सांस्कृतिक महत्व को समझने की जरूरत है। आलोक पर्व पर पर्यावरण संरक्षण रखने की जरूरत है। वातावरण स्वच्छ रहेगा, तभी हर नागरिक स्वस्थ रहेगा। इस पर्व का उद्देश्य सामाजिक एकता और समरसता है।
आलोक पर्व ऐसा त्यौहार है, जो हमें समाज में एक-दूसरे से जोड़ता है। हम आपस में उपहार बाँटते हैं, जिससे समाज में सद्भाव बढ़ता है। एक-दूसरे के साथ सब मिल-जुल कर आलोक पर्व मनाएं, परंतु पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएं।
हम सबको बाहरी दिखावे या विभिन्न तरह के नशे से दूर रह कर केवल बाहर के अंधकार को दूर नहीं करना है, अपितु अपने अंतःकरण के वैचारिक तिमिर को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।
भारत में दूर रहने वाले लोग भी त्यौहार के अवसर पर अपने घर आकर अपनों के साथ ही विशेष पर्व का आनंद उठाने का यथा संभव प्रयास करते हैं, इसलिए कहना सही होगा कि आधुनिक वातावरण में भी आलोक पर्व अपनी परंपराओं को जीवंत बनाए हुए है। यह पावन पर्व पूरे देश में मनाया जाता है , जो देश की संस्कृति का दर्शन कराता है । यही विविधता में एकता का आदर्श है ।
भारत में आलोक पर्व का अलग ही महत्व है। यहाँ प्रत्येक पर्व प्रकृति और संस्कृति से गहरा तादात्म्य रखते हैं, परंतु वर्तमान में हम लोग अपनी शाश्वत परंपराओं को भुलाते जा रहे हैं। सच तो यह है कि प्राकृतिक वातावरण से तालमेल स्थापित करने के लिए ही पर्व मनाए जाते थे। इसीलिए आज सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करने के वाले इन पर्वों और त्यौहारों की मानवीय जीवन में विशेष अहमियत है।
वास्तव में आलोक पर्व हमारे अपनों के करीब आने का पर्व है। कहा जाए तो आलोक पर्व एक डोर की तरह है, जो हमें अपनों से जोड़ने का काम करता है।
कार्तिक मास के बीच में आलोक पर्व आया तो अपावन अँधेरी अमावस्या प्राण और चेतना के उजाले से जगमगा उठी। हर वर्ष यह पर्व अनेक सुखद समाचार लेकर आता है। खेत-खलिहान, बाग- बगीचे और राह डगर में पसरे घोर अँधेरे-उजाले के बीच चैतन्य सेतु बनाता आलोक पर्व का आना सनातन परिपाटी है, जो पुराकाल से प्रारंभ हुई है। यह तेज, दीप्ति, द्युति, प्रकाश और प्रभा के मनोभावों का पर्व है। आलोक पर्व विलास और मादकता की अँधेरी लंका को मिटाने वाले श्री राम की अय़ोध्या नगरी जैसी प्रकाश है। आलोक पर्व की रात घोर अँधेरे के बीच प्रकाश की शक्ति गर्व से सिर उठा कर फूट पड़ती है, तो देखते ही लगता है कि कि एक नन्हें से अग्निगर्भ दीप ने आसपास के सारे अंधकार को अपने प्रकाश से पराजित कर दिया। इसने अज्ञान के तमस को हरा दिया। इस परंपरा का अलौकिक बोध ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् अंधकार से लड़ने की प्रेरणा है। जब सूर्य, चंद्रमा और तारे अस्त हो जाते हैं तो मनुष्य इन दीपों के सहारे प्रकाश प्राप्त करता है। तभी तो तिमिर को ललकार कर दीप अँधेरे से कहता है, “अंधकार तू संसार को ढकने का साहस मत कर… क्या तू नहीं देख रहा, मैं अपनी किरणों की लहरों से सब कुछ आलोकित कर रहा हूँ।“