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अधूरी जिन्दगी नारी की

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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बिना प्राण का तन नहीं सुहाए,
बिना जल का नहीं होता बाग
पति जब दुनिया से चले जाए
तो नारी का फूट जाता है भाग।

अधूरा जीवन नारी का होता है,
फिर कल्याणी नाम पड़ता है
भगवान क्यों बनाए ऐसी रीत,
छिन जाती नारी की खुशी-प्रीत।

बेचारी नारी असहाय हो जाती है,
जब पति का साथ छूट जाता है
सहमी,दुबकी-सी वो रह जाती है,
कोई भी दर्द नहीं समझ पाता है।

शुभ कार्य में दूर बिठाई जाती है,
दूज-तीज,करवा ये छूट जाती है
पीहर से लेकर के ससुराल तक,
चल रही रीत-रिवाज आज तक।

अधूरी जिन्दगी है नारी की,
खो गई खुशहाली बिचारी की।
जैसे साँस बिन देह है बेकार,
ऐसे ही पिया बिन नारी निराकार॥

परिचय–श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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