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एक तेरा साथ

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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एक तेरा तो साथ मुझे ही,
सारे जहां से प्यारा है।
रूह का रिश्ता हम दोनों का,
इसीलिए तो न्यारा है।

हर पल-हर क्षण ध्यान में रहते,
चलते-फिरते साथ में रहते।
कहां अलग तुम मुझसे जानम,
दिल की धड़कन में हो रहते।

रब ने बनाया है तुझे मेरे लिए,
आओ कुछ पल यूँ ही जी लें।
कल देखो आये ना आये,
आज को हम जी भरकर जी लें।

एक तेरा साथ मिले जो,
तेरी रूह में समा मैं जाऊं।
तू ना तू रहे मैं ना मैं रहूं,
तुझमें ही कहीं मैं खो जाऊं।

एक तेरा ही साथ मिले तो,
जन्म-जन्म को मैं बिसराऊँ।
कान्हा बन जाओ तुम मेरे,
मैं राधा तेरी बन जाऊंll

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मानमहिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़लकहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl

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