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अमृतराय का योगदान अविस्मरणीय-प्रो. हाड़ा

नई दिल्ली।

अमृतराय ने केवल सृजनात्मक लेखन ही नहीं किया, अपितु अनुवाद और सम्पादन में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है। हिंदी पाठक उन्हें प्रेमचंद की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ के लिए याद करते हैं, किन्तु ‘बनास जन’ के इस अंक से उनके कहानीकार होने का महत्व भी आ सकेगा।

सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. माधव हाड़ा ने भारत मंडपम में लगे पुस्तक मेले में नवारुण प्रकाशन के स्टॉल पर ‘बनास जन’ के शताब्दी कथाकार अमृतराय विशेषांक का लोकार्पण करते हुए यह बात कही। इस अवसर पर परिचर्चा में लघु पत्रिका ‘चौपाल’ के संपादक डॉ. कामेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि आज लघु पत्रिकाओं सहित समूची पुस्तक संस्कृति पर खतरा आ गया है, जहाँ इंटरनेट जैसे माध्यम युवा पीढ़ी को साहित्य से दूर ले जा रहे हैं। हिंदी की सह आचार्य डॉ. नीलम ने कहा उपन्यासकार से भी ज्यादा अमृतराय के कहानीकार रूप का अधिक विकास हुआ है। वे शोषित, और वंचित स्त्री-पुरुष की पीड़ा से जुड़कर पूरी प्रतिबद्धता से कहानी लिखते रहे, जिससे उनकी जीवन दृष्टि विकास के विभिन्न चरणों का आभास मिलता है। डॉ. नीलम ने विशेषांक के लिए प्रो. नामदेव को बधाई दी। प्रकाशन के निदेशक संजय जोशी एवं सहयोगी आदित्य कश्यप ने सभी का आभार प्रदर्शित किया।