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अलीगढ़ काण्ड अमानवीयता की चरमोत्कर्ष घटना

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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इस देश में जितनी गंगा- जमुनी तहज़ीब की प्रशंसा और दुहाई दी जाती है,और उसके विपरीत कृत्य होते हैं तो इसका क्या आशय हो सकता है ? एक क्षण की भूल जिंदगीभर के लिए गुनहगार बना देती है। कहते हैं कि रमजान का महीना बड़ा साक-पाक माना जाता है,जिस दौरान कोई गलत काम नहीं किया जाता। यहाँ तक कि हलक से थूंक नहीं निगला जा सकता है और वहीं छोटे से कारण से एक नन्हीं बेटी की जान चंद पैसों के लिए ले ली। यह घटना कुछ दरिंदों ने की,पर इससे उस समुदाय जाति का मुखौटा सामने आ जाता है।
कभी-कभी यह ख्याल आता है कि,यह समाज इतना क्रूर क्यों है ? शायद उनमें वहशीपना जन्म से कूट-कूट कर भरा जाता है। उसका कारण हिंसक प्रवृत्ति का होना,उनमें शुरू से ही जानवरों का क़त्ल करना सिखाया जाता है। इससे वे निर्मम हो जाते हैं। कोई भी हिंसक,अहिंसक और शांतिप्रिय नहीं हो सकता। उनके लिए खून से खेलना आम बात है। वे मांसाहार का सेवन करते-करते इतनी निर्मम हो जाते हैं कि,वे उसे सामान्य बात मानते हैं। मांसाहार करने वाला हिंसक होता है, जब वह खाने-पीने में छुरी-चाकू का उपयोग करता है तो स्वाभाविक है कि सामान्य अवस्था में भी वे उत्तेजना से भरे-पूरे होते हैं,और उनको फिर किसी पर भी चाकू चलाने में हिचक नहीं होती। कुछ अपढ़-जाहिल लोग बिना विचारे ऐसा कदम उठाते हैं कि,पूरी कौम और मुल्क निंदनीय हो जाता है। यह अपराध किसी भी समाज से बचा नहीं है,और न बच सकता है, कारण कि,आज हमने अपना भोजन तामसिक और राजसिक बना लिया है।
दिन रात टी.वी.,फिल्मों में ,पत्र-पत्रिकाओं में हिंसक वातावरण परोसा जा रहा है,और उनमें नयी-नयी तकनीक और ढंग बताये जाते हैं। जब हम कोई विषय पर सीख लेते हैं फिर उसमें प्रयोग करते हैं,और हमारा विश्व इतना विशाल और बड़ा है कि,जहाँ अरबों खरबों लोगों का मन-मस्तिष्क कुछ अच्छे और बहुत ख़राब प्रदर्शन के लिए आतुर हैं। हम मानव बुरी बातें बहुत शीघ्र ग्रहण करते हैं, जबकि अच्छी बातें हमारे गले नहीं उतरती।
यह रोग हिंसा,झूठ,चोरी, बलात्कार और संग्रह का दिन-रात बढ़ेगा। इस कारण हममें क्रोध,मान मायाचारी और लोभ की वृत्तियाँ दिन-रात बढ़ने से ये सब होंगे और होते रहेंगे। वैसे ये कोई नयी बात नहीं है हमारे समाज में। हाँ,अब कुछ नयी तकनीक जरूर आ गई है पर होता तो वो ही है। ढाई साल की बच्ची के साथ होना यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। जब हम गर्भस्थ शिशुओं की हत्या करने में नहीं चूकते,तब जन्म के बाद तो हत्या- बलात्कार करना सामान्य बात है,और अब इस पर रोक लगना मुश्किल है,फिर इसके लिए कितने भी कड़े कानून बना लो।
वर्तमान में शिक्षा के साथ शिष्टाचार,नैतिकता,धार्मिकता एक-दूसरे को इज़्ज़त देना खान-पान में शुचिता होना,मर्यादा रखना और धीरज,सहानुभूति के गुण अपने जीवन में नहीं उतारेंगे,तब तक सुधार होना मुश्किल होगा। मालूम है यह जीवन क्षण भंगुर है। कोई न कुछ लेकर आया है,और न लेकर जाएगा। लेकर जाता है अपने साथ किये गए गुण-अवगुण और उनका कर्मफल भोगना पड़ता है। दिन-रात हम देख रहे और उसके बाद भी अज्ञानी बने हुए हैं। इस बात पर सोचने की जरूरत है कि,इस पूरे कांड में उस निर्दोष बच्ची का क्या दोष था…?

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।