राधा गोयल
नई दिल्ली
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कहाँ छुपे हो बनवारी, कुछ अता-पता बतलाओ ना
आज अमानुष बना मनुष, आकर उसको समझाओ ना।
बेमतलब की मार-काट में उलझा है इन्सान,
सही-गलत का ज्ञान नहीं क्यों समझा ये इन्सान ?
आगजनी और आन्दोलन से क्या सुधार होगा ?
प्रगति की रफ्तार रुकेगी, बंटाधार होगा।
शान्ति वार्ता से बातों का समाधान हो तो,
इतने सारे लोगों का संहार नहीं होगा॥
कितना इनको समझाया, पर कोई समझ न पाया
पता नहीं वो कौन है, जिसने इन सबको बहकाया ?
अब तो एक सहारा तुम ही, ये उलझन सुलझाओ।
आज अमानुष हुआ मनुष, आकर इसको समझाओ॥