हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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आज आजादी है हमको मिली तो,
दिलाई शहीदों और वीर जवानों ने
सीमा के प्रहरी जवानों की वजह से,
सुरक्षित हैं हम अपने मकानों में।
है उदगार हमारे क्या उनकी खातिर ?
क्या भाव और कितनी कैसी यादें हैं ?
एक रस्म जान मजबूरन हर साल हम,
१५ अगस्त व २६ जनवरी को मानते हैं।
इन खेतों पर है आज हक हमारा तो,
उन शहीदों का बलिदान ये हम खाते हैं
ये खेत खलियान थे सब ज़मींदारों के,
न जाने ये बातें कैसे हम भूल जाते हैं ?
था फिरंगियों का कब्जा जमीं पर हमारी,
हम तो उनकी शतरंज के मोहरे प्यादे थे
जमीन हमारी थी और था देश भी हमारा,
पर फिर भी बने वे आकर यहां शहजादे थे।
हम काश्तकार थे महज जमीनों के,
मालिक तो वे ही असल कहलाते थे
फसल उगाते वे हमसे थे यहां खेतों में,
फिर कच्चा माल अपने देश ले जाते थे।
भला तो हो उन बहादुर शाहिद वीरों का,
जो देश के लिए बलिदान अपना चढ़ाते थे।
एक धेला न लिया था पगार का उन्होंने,
खुद कमाते थे और मेहनत का ही खाते थे।
आज हमको मिली आजादी विरासत में,
हम पगार लेकर भी काम कहां करते हैं?
लाखों के वेतन भत्ते हैं हमारे फिर भी तो,
सब्सिडी और मुफ़्त का इंतजार करते हैं।
मुफ़्तखोरी की आदत से भारत को जल्दी,
हम सबको मिलकर निजात दिलाना होगा।
आर्थिक संकट में फंसते आजाद भारत को,
हमको ही तो बरबाद होने से बचाना होगा॥