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आज कवि सम्मेलन के संयोजक पूरी तरह व्यावसायिक- डॉ. सिंह ‘मार्तण्ड’

व्यंग्य कविता के नाम पर आज फूहड़ प्रस्तुति-सिद्धेश्वर

चर्चा….

पटना (बिहार)।

आज के कवि सम्मेलन के संयोजक पूरी तरह व्यावसायिक हो गए हैं। पहले के कवि सम्मेलन में श्रोता अधिक और कवि कम होते थे, और आज श्रोता कम और कवि अधिक होते हैं। इसकी खास वजह यह है कि पहले और अब की कविताओं में बहुत बड़ा अंतर आ गया है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में ‘कवि सम्मेलन तब और अब’ विषय पर यह बात मुख्य अतिथि व संपादक डॉ. वीर सिंह ‘मार्तण्ड’ (कोलकाता) ने कही। आपने हिंदी साहित्य के इतिहास से अपनी बात शुरू की और उसके परिवर्तन के स्वरूप को समझाया।
ऑनलाइन माध्यम में इस आयोजन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि आज के कवि सम्मेलन में पढ़ी गई अधिकांश कविताएं व्यंग्य कविता के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति होती है। कार्यक्रम में देशभर के प्रतिनिधि साहित्यकारों और संपादकों ने हिस्सा लिया। अध्यक्षीय टिप्पणी में डॉ. सुनीता सिंह ‘सुधा’ ने कहा कि पहले के कवि सम्मेलन में साहित्यिक गरिमा बरकरार रहती थी। प्रेम, सौन्दर्य और विरह आदि विधाओं पर जोर दिया जाता था। ऋचा वर्मा ने कहा कि स्वार्थपरकता से हटकर सच्चे साहित्यिक कार्यक्रम में शिरकत करें, अच्छी कविताओं को तरजीह दें, तभी आज भी अच्छे कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठी का सिलसिला बना सकते हैं। पूनम (कतरियार), राजेंद्र राज, जे. एल. सिंह, वंदना बंसल, श्रीकांत गुप्त, नीलम श्रीवास्तव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


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