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आ चल दूर से देखें दुनिया

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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चलो दिखाएं तुमको दुनिया,
कितने रंग कितने बदरंग।
बंध धागे उड़ान ऊपर तक,
तुम उड़ना मेरे संग-संग।

आओ तुम्हें मैं पँख लगा दूँ,
मैं भी लगा कर फिरूं मलंग।
नीलगगन में मिल मंडराए,
देखे धरती हम बन विहंग।

यह दुनिया बड़ी निराली है,
हर चाह करने पड़ते जंग।
है कठोर लोग यहाँ स्वार्थी,
सम्हलना नहीं कर मति भंग।

मोल नहीं यहाँ भावना की,
अंदर ही रखना मन तरंग।
टांग खींचे बढ़ते देख जलन,
काटे मांझा उड़ती पतंग।

कुछ लोग भले हैं गिद्ध मगर,
भले भोले नोचे अंग-अंग।
तादाद है ज्यादा अच्छे की
मुठ्ठीभर धूर्त से है तंग।

कीमती मलमल कपड़े धोए,
लालायित लठ्ठर नँग-धड़ंग।
जीने जीवन मरने पड़ते,
ना होना तुम देख के दंग।

कोई तड़पे झंझावत में,
झँझट में कोई मस्त मतंग।
बेमतलब कोई धन लुटाए,
निरंक जेब कई हाथ रंग।

भ्रस्टाचार आकंठ डूबे,
पाप धोने दे ठेका गंग।
कर के काज सभी अनैतिक,
माला फेरे जोगी चबंग।

हो कहीं भूखे देश सेवा,
खा-खा देश धर्म कोइ कंग।
घोटाले काले कर कुछ तो,
बना रहे थे राष्ट्र अपंग।

देखो जब गम दर्द के मारे,
न गुजरना किए आँखें बंद।
सहला देना चोट किसी की,
बज उठेंगे खुशी के मृदंग॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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