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जीवन-सुमन खिला देना

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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चिर-बिछोह से पीड़ित परिजन,उनका साथ निभा लेना।
अपनेपन के शब्द बोलकर,अपनापन दिखला देना॥

दुखी बहुत हैं,गुमसुम भी हैं,
उनका मौन भयावह है।
उनके हिस्से में आया दु:ख,
बेबसी का कलरव है।
चुप्पी का माहौल वहाँ तो,चुप रह समय बिता देना।

आशा और विश्वास से संभलें,
बहते आँसू आँखों के।
पोर-पोर की पीड़ा पिघले,
बनते मरहम साँसों के।
महक उठे उजड़े मधुवन ज्यूँ,जीवन-सुमन खिला देना।

चिर बिछोह से जाने वाले,
वापिस कभी न आते हैं।
उन्हें याद कर जीने वाले,
घुट-घुट कर रह जाते हैं।
दूर हटे तम छाया गहरा,रोशन दीप जला देना।
अपनेपन के शब्द बोलकर,अपनापन दिखला देना॥

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