हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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महिला सशक्तिकरण व नारी उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले समाज में जब महिलाओं के साथ दुष्कर्म-सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटना होती है, तो मन बहुत दुखी होता है। कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) में महिला चिकित्सक के साथ जो कुछ भी हुआ, वह सभ्य समाज के लिए नासूर है। दर्द में तड़पती हुई वह महिला एक और ‘निर्भया’ बन गई। कौन सुनेगा उसकी करुण पुकार को, उस मरणासन्न अवस्था में रोती- बिलखती ज़िन्दगी के इस पड़ाव पर जो दर्द उसको मिला है, वह दर्द के रिश्तों की अनसुलझी गुत्थी बन गई है। दर्द के साए में सब-कुछ खत्म हो जाता है। समाज में पनप रहे इन राक्षसों की दानवी गिद्ध दृष्टि से नारी अभी भी असुरक्षित है। इस बर्बरता से महिलाओं की सुरक्षा पर फिर सवालिया निशान हैं। ऐसी निर्ममता को देख कर पोस्टर्माटम करने वाले चिकित्सकों के हाथ भी काँप गए। सरकारी अस्पताल में महिला चिकित्सक की आँखें फोड़ी, गर्दन की हड्डी-पसली भी तोड़ी गई, गला दबाया और क्या बताएं। ऐसी घटना पर त्वरित कार्रवाई फ़ास्ट ट्रैक न्यायालय में होना चाहिए। ऐसा कहना होगा कि पुरुष प्रधान समाज की हिस्सेदारी अभी भी नहीं बदली है, जो आधुनिक युग में युवा भारत की यह कैसी सोच है ? यह शर्मनाक बात है। चिकित्सा सुरक्षा अधिनियम के तहत और महिला चिकित्सक के हत्यारे को सख्त सजा दी जाना चाहिए। आक्रोश का बवंडर फिर से उठता जा रहा है। आखिर अपराधियों की गुंडागर्दी व राजनीतिक धरातल पर पनपने से उनके अपराध कब तक होते रहेंगे ? अस्पताल में गुंडों की भीड़ का जो हल्ला बोल हुआ और वहाँ तोड़फोड़ जैसी कायराना हरकत भी की गई। यह क्या चल रहा हमारे देश में ? इतनी बड़ी घटना तो ठीक, पर ऐसी घटनाओं पर राज्य सरकार हमेशा चुप ही रहती है। जब मामला ज्यादा खतरनाक हो जाता है तो दिखावे की चादर ओढ़ कर राजनीति का खेल करती है। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी महिला होकर अपनी संवेदनाओं को कैसे स्थिर कर लेती है कि उन्हें इसमें वाम मोर्चा व भाजपा का हाथ लग रहा है। ऐसा कह देने से किसी का भला नहीं होने वाला है। बहुत सारे सवालों के घेरे में है पश्चिम बंगाल सरकार। हर एक चीज को राजनीति के चश्मे से देखना ठीक नहीं है। चिकित्सक बेटी के लिए अब पूरा देश इंसाफ की मांग रहा है तो ममता दीदी के हाथों में इंसाफ़ की गुहार की तख्ती या मोमबत्ती लेकर सज़ा की बात हजम नहीं होती है। अब सीबीआई जांच हो रही है, देशभर के अस्पतालों में सरकारी चिकित्सक हड़ताल पर चले गए, चिकित्सा व्यवस्था चरमरा रही है, मरीज़ परेशान हैं और इतना सब कुछ हो रहा है, पर राजनीति में नहले पर दहले का कार्य जारी है। कोई व्यवस्था को ठीक करने व इंसाफ़ की बात नहीं कर रहा है। सिर्फ अपनी-अपनी रोटी सेंक रहे हैं। ऐसी घटना के बाद भी राजनीतिक दलों की सोच, उनके विचारों में, बोलने में संवेदना की कोई झलक नहीं मिल रही है। यह बहुत ही नकारात्मक पहलू है राजनीति का। इतनी दर्दनाक घटना को भी राजनेताओं ने अपनी राजनीति हिस्सा क्यों बना लिया ? इस पर तो एकजुटता के साथ इंसाफ की बात करना थी, मिलकर दरिंदों के लिए सख्त सज़ा ही नहीं, बल्कि सज़ा-ए-मौत के लिए आवाज उठानी चाहिए थी, मगर इस पर भी नेता राजनीति कर रहे हैं।