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ईर्ष्या भाव नहीं, सच्चा मनुज वही

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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जिसके ईर्ष्या भाव नहीं है।
जग में सच्चा मनुज वही है॥
ईर्ष्या डाह रखे क्यों मानव।
सदा स्वार्थवश बनता दानव॥

औरों की खुशियों से जलता।
ईर्ष्या भाव हृदय में पलता॥
रोग सभी को ये लग जाता।
करके जीवन में पछताता॥

सुख और चैन कभी न पाए।
जो जीवन में आग लगाए॥
डाह बदन को आग लगाता।
जीवन को यह नरक बनाता॥

त्यागें ईर्ष्या डाह दोष नर।
तभी बनेगा जीवन सुंदर॥
जिसने डाह किया जीवन में।
स्वयं जला वह अंतर्मन में॥

मानव के ये अवगुण सारे।
जीते जी उसको ये मारे॥
जीवन की है यही कहानी।
समझे इसको वो है ज्ञानी॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’