डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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रक्षाबंधन विशेष….
आज श्रावणी पूर्णिमा, राखी का त्यौहार।
उत्सव भाई-बहन का, प्रेम सरित रसधार॥
कच्चा धागा प्रेम का, पक्का धागा प्रीति।
भाई-बहन अद्भुत मिलन, प्यार भरी यह रीति॥
राखी शुभ रक्षा कवच, बहना का विश्वास।
भातृहृदय उद्गार यह, माँ ममता आभास॥
मातृ समा बहना हृदय, स्नेहांचल नित छाव।
भाई का शुभ आगमन, अनुपम स्नेहिल भाव॥
थाल सजा बहना खड़ी, ले अक्षत सिन्दूर।
दीप जला नयना मुदित, देखी भाई नूर॥
सज सोलह शृङ़्गार तनु, चारु पहन परिधान।
विदा बहन ससुराल से, चली भातृ सम्मान॥
देख बहन मुस्कान को, कुसमित भाई फूल।
सुरभित मन पुलकित हृदय, मुदित बहन अनुकूल॥
बांध कलाई राखियाँ, तिलक चाउर कपाल।
दीप जला की आरती, हर्षित बहना चाल॥
सजी कलाई हर्ष मन, भाई दे उपहार।
बहना को रक्षा वचन, दे खुशियाँ सुखसार॥
बहना स्नेहाशीष दी, ली भाई को चूम।
अवगाहन स्नेहिल सलिल, मची आज है धूम॥
समरसता त्यौहार यह, रक्षा-सूत्र अमोल।
सर्वधर्म सम्भाव का, स्नेह सुधा रस घोल॥
सिन्धु घाटी चली प्रथा, स्नेहिल आशीर्वाद।
मातु पिता गुरु श्रेष्ठजन, पावन हृदय प्रसाद॥
कर्णवती रक्षाकवच, बाँध हिमायूँ हाथ।
चली प्रथा भाई बहन, प्रेम सुधा रस साथ॥
सजीं दूकानें राखियाँ, भीड़-भाड़ बाज़ार।
पावन शुभ रक्षा दिवस, भाई बहन सुखसार॥
धर्म जाति बिन भेद के, राखी पर्व महान।
श्रावण का पूनम दिवस, हो भाई द्युतिमान॥
‘कोरोना’ की आपदा, भाई-बहन हैं दूर।
राखी बिना कलाईयाँ, सूनी बन मजबूर॥
वर्धापन शुभकामना, भाई बहन सब आज।
बरसें खुशियों की घटा, राखी सूत्र समाज॥
राखी में संकल्प लें, नारी सबल समाज।
निर्भय शिक्षित रक्षिता, बनें बहन आवाज़॥
बहना विधि उपहार जग, कोमल चित्त उदार।
ममता करुणा माँ समा, दो रक्षा उपहार॥
कवि ‘निकुंज’ करता नमन, ज्येष्ठा मातु समान।
रक्षक तेरी अस्मिता, स्नेहाशीष प्रदान॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥