गोष्ठी में संयोजक सिद्धेश्वर बोले-पुस्तक मेले में पुस्तक रखना मात्र फैशन रह गया
पटना (बिहार)।
आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। नाम कमाने के चक्कर में भूल रहे हैं कि हम भावी पीढ़ी को क्या परोस रहे हैं। सोशल मीडिया ने बहुत हद तक इसका स्तर गिरा दिया है। पढ़ना और लिखना दोनों ही कम होता जा रहा है।
मुख्य अतिथि लेखिका इंदु उपाध्याय ने यह बात कही। अवसर रहा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में आभासी आयोजन के तहत ‘पुस्तक मेला या चाय चाट का ठेला!’ विषय पर विचार गोष्ठी का। इसका संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, पुस्तक मेले में पुस्तक रखना और लोकार्पण करना मात्र फैशन बनकर रह गया है। ‘पुस्तक मेला या चाय पान ठेला’ जैसे व्यंग्य के माध्यम से इस बात पर चिंतन-मनन भी कर सकते हैं कि इस तरह की पुस्तक मेले में चाट पकोड़े की अपेक्षा पुस्तक की बिक्री कैसे बढ़ाई जाए ? सामर्थ्यवान कुछ लेखकों को छोड़कर, आर्थिक रूप से असक्षम श्रेष्ठ रचनाकारों की श्रेष्ठ पुस्तकों का प्रकाशन कैसे हो और वह पुस्तक मेले तक कैसे पहुंचे ? निश्चित रूप से यह कोई सरकारी संस्थान ही कर सकता है, लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश का साहित्यिक संस्थान भी पारदर्शी नहीं होता और बार-बार मुख्यधारा के लेखकों का ही चुनाव किया जाता है, और नए लेखकों के नाम पर स्तरहीन पुस्तकों को अनुदान दिया जाता है, जो किसी के लिए लाभप्रद साबित नहीं होता।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संपादक डॉ. बी.एल. प्रवीण ने कहा कि यह सच है कि आजकल प्रकाशन महज व्यवसाय का रूप ले चुका है जहां लेखन के स्तर मूल्यांकन की कोई कसौटी नहीं होती। कुछ भी छप सकता है इस शर्त पर कि पैसा लेखक को ही देना होगा।
ऑनलाइन विचार गोष्ठी में डॉ. नीलू अग्रवाल ने कहा कि ऐसे आयोजनों के लिए सिद्धेश्वर जी बधाई के पात्र हैं। डॉ. शरद नारायण खरे (मप्र) ने कहा कि पुस्तक मेला अपनी गरिमा, स्तरीयता, गुणवत्ता व उत्कृष्टता को खो रहा है, यह यथार्थ है। दरअसल रचनाओं में, पुस्तकों में गुणवत्ता होना चाहिए। केवल अधिक संख्या में पुस्तकों का प्रकाशन ही संतोष का विषय नहीं है। रजनी श्रीवास्तव, ऋचा वर्मा, नलिनी श्रीवास्तव, लेखिका गार्गी सहित पूनम देवा, संतोष मालवीय, चैतन्य किरण, नीलम श्रीवास्तव आदि ने भी बात रखी।