हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:२१२२ २११२ २२२२ २२२२
जन्म मिलता मात-पिता से, कर्मों से जीवन खिलता।
रूप प्रभु का मात-पिता में, जिसने देखा वो खिलता॥
भाव श्रद्धा प्रेम बनें तो, सुख जीवन में फलते हैं,
त्याग करते स्वार्थ बिना जो, प्रभु चरणों में पलते हैं।
सृष्टि न्यारी सीख सजाती, समझें तो जीवन खिलता,
जन्म मिलता मात-पिता से…॥
एक धरती एक गगन है, होते इक प्रभु मानव के,
सृष्टि भी तो एक बनी है, जो मिटती अब मानव से।
काटते सब वृक्ष वनों से, तपती धरती जन जलता,
जन्म मिलता मात-पिता से…॥
पुष्प खिलता पौध-शिखर पर, काँटे शाखा में रहते,
वक्त से हालात बनें पर, क्षण इसके नहिं दिखते।
जिन्दगी में डूब सके जो, तट भव का उसको मिलता,
जन्म मिलता मात-पिता से…कर्मों से जीवन खिलता॥
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।