सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
******************************************
ओ मेघा रे…
गन्नू-माँ आज तू बहुत उदास है, क्या बात है ?
माँ-तुझे क्या बताऊँ बेटा ? तू अभी बहुत छोटा है, तू इन बातों को नहीं समझेगा, तू तो अच्छी पढ़ाई किया कर। भगवान तेरी अच्छी नौकरी लगा देगा तो इस घर की ग़रीबी दूर हो जाएगी।
गन्नू-माँ मैं ख़ूब मन लगाकर पढ़ाई करता हूँ, मास्टर जी कहते हैं मेरी कक्षा में मैं पढ़ने में सबसे तेज हूँ।
माँ- गन्नू के सिर पर हाथ फेरकर दुलार करते हुए कहती है-“बेटा तू ऐसे ही हमेशा तेज़ रहना, अपनी माँ के दिन बदलना।”
गन्नू-अब तो बता दे माँ तू इतनी गुमसुम-सी और उदास क्यों है ?
माँ-गन्नू, पिछले कई दिनों से मुझे मजदूरी (काम) नहीं मिल रहा है, और बरसात नज़दीक आती जा रही है। इस बार घर के कवेलू (खपरैल) बदलवाना ज़रूरी है, बहुत जगह से पानी टपकता है, ऊपर से बंदरों ने भी घर पर कूद-फांद करके बहुत नुकसान कर दिया है। बड़-बड़े छेंकले हो गए हैं, घर की गारे की (कच्ची) दीवारें हैं, किसी भी समय भरभरा के गिर जाने का डर बना रहता है।
गन्नू-पापा भी तो काम करने जाते हैं, वो क्यों नहीं बदलवाते घर के कवेलू ?
माँ-उन्हें भी बहुत कम पैसे मिलते हैं और वे उन पैसों में से आधे पैसे अपने दिव्यांग ( विकलांग ) भाई की मदद करने में दे देते हैं। मुझे काम मिलता रहे तो जैसे-तैसे गुज़ारा चलता रहता है। कमली जब तक थी, तो मुझे बहुत सहारा लग जाता था। दोनों माँ-बेटी मिलकर मज़दूरी करते थे, तो कोई परेशानी नहीं आती थी। उसके ससुराल जाने के बाद से मैं अकेली पड़ गई, लेकिन “सही उम्र में बेटी का ब्याह भी करना भी ज़रूरी होता है।”
गन्नू-माँ तू चिन्ता मत कर। मैं बड़ा होकर बहुत अच्छी नौकरी करूँगा, तेरी ख़ूब सेवा करूँगा, तूने जितने दुःख उठाए हैं, मैं उतना ही सुख तुम्हें देने की कोशिश करूँगा।
छोटे से गन्नू की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर माँ का दिल भर आया, लेकिन भावनाओं से घर नहीं चलता, घर तो चलता है व्यवस्थाओं से, और इस बार बरसात के मौसम के आगमन से आने वाली परेशानियों की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई थी।
अमीरों को तो किसी भी मौसम से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, उनके पास हर मौसम का सामना करने की पहले ही से सब तैयारियां होती हैं।
गर्मी के लिए उनके पास ए.सी. कूलर होते हैं, ठंड के लिए उनके पास रजाईयां, कम्बल और हीटर होते हैं, बरसात के लिए पक्के मकान की छत होती है, लेकिन ग़रीब को तो हर मौसम की परेशानियों का सामना अपने स्तर से करना होता है।
आसमान में काले बादल गरज रहे थे, और गन्नू की माँ को ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे कौड़े मार रहा हो।
बार-बार अपने कच्चे घर पर रखे कवेलुओं (खपरैल) को देख रही थी,-
हे भगवान, ये बरसात कुछ दिन थम जाए ताकि मैं कहीं से उधार रूपए मांगकर घर के कवेलू बदलवा लूँ।
घर के पीछे मोहल्ले के बच्चे शोर मचाते हुए नाच- नाच कर गा रहे थे-
“पानी बाबा आया रे, ककड़ी भुट्टा लाया रे
पानी बाबा आया रे…”
उधर आसमान से मेघों की बूंदे बरसने को तैयार थी और गन्नू की माँ की आँखों से आँसुओं की बूँदें…। ये कैसी बरसात थी ??
परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”