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समुद्र को अंजलि में भरना पड़ता है लघुकथा में-डॉ. शुक्ल

लोकार्पण…..

इंदौर(मप्र)।

ईसा की अनेक शताब्दी पूर्व कथा का उद्गम वेदों से माना जाता है परन्तु इसके नये रूप के लिए हम पाश्चात्य साहित्य के ऋणी हैं। भले ही लघुकथा,कहानी का वामन रूप है परन्तु यह उससे भिन्न है,क्योंकि यह कहानी की सिनोप्सिस नहीं होती। समुद्र को अंजलि में भरना पड़ता है लघुकथा में।
यह विचार प्रख्यात लघुकथा रचयिता डॉ.योगेन्द्र नाथ शुक्ल ने लेखिका अचला गुप्ता के लघुकथा संग्रह ‘अभिरूचि’ के लोकार्पण अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि लघुकथा का कैनवास छोटा होता है इसलिए सांकेतिकता,प्रतीकात्मकता का सहारा लिया जाता है। लघुकथा लेखन आसान नहीं, क्योंकि इसमें समुद्र को अंजलि में भरना पड़ता है। लघुकथा की सफलता लेखक के विचार,उसकी संवेदना,उसके चिंतन मनन और शिल्प कौशल पर निर्भर करती है।
कृति सम्पादक मुकेश इन्दौरी ने कहा कि लघुकथा गढ़ने के लिए माइक्रोस्कोपिक दृष्टि की आवश्यकता होती है। स्थूल में सूक्ष्म की पहचान ही लघुकथा की नींव होती है।
इस संग्रह में ३५ लघुकथाओं को लेखिका ने सहज और सरल भाषा में शिल्प और कथ्य के सहारे प्रस्तुत किया है। लेखिका ने अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं पर पैनी नज़र रखते हुए लघुकथाओं को स्वरूप दिया है। गागर में सागर भरने का काम लेखिका ने बखूबी किया है।
कृतिकार अचला गुप्ता ने कहा कि लिखने का शौक बचपन से था। ताउम्र अंतर्मन की भावनाएँ कभी कविताओं तो कभी कथाओं के रूप में कागज़ पर उतरती रही।
इस अवसर पर देश के कई जाने-माने साहित्यकार ऑनलाइन उपस्थित थे।

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