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कागजी तितली

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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ठिठुरन-सी लगे,
सुबह के हल्के रंग रंग में
जकड़न भी जैसे लगे,
देह के हर इक अंग में।

उड़ती-सी लगे,
धड़कन आज आकाश में
डोर भी है हाथ में,
हवा भी है आज साथ में।

पर कागजी तितली…
लगी सहमी-सी
उड़ने की शुरुआत में
फैलाए नाजुक पंख,
थामा डोर का छोर…
हाथ का हुआ इशारा,
लिया डोर का सहारा…
डोली इधर से उधर,
गई नीचे से ऊपर
भरी उमंग से,
उड़ने लगी
जब हुई उड़ती तितलियों के,
साथ में
बतियाती जा रही है,
पंछियों के पँखों से…
होड़-सी ले रही है,
ज्यों आसमानी रंगों से
हुई थोड़ी अहंकारी,
जब देखी अपनी होशियारी
था दृश्य भी तो मनोहारी,
ऊँची उड़ान थी भारी।

डोर का भी रहा सहारा,
हाथ करता रहा इशारा
तभी लगी जाने किसकी नजर,
एक पल में जैसे थम गया प्रहर
लग रहे थे तब हिचकोले,
यों लगा जैसे संसार डोले।

डोर से डोर थी,
अब कट गई
इशारे की बिजली भी,
झट से गई
अब तो हवा भी न दे पाई, सहारा
घड़ी दो घड़ी का था,
अब खेल सारा
ऊँची ही ऊँची उड़ने वाली,
अब नीचे ही नीचे आई
जो आँखें मदमा रही थी,
अब तक…
उनमें अंधियारी थी छाई।

तभी उसे लगा,
अचानक एक तेज झटका
डोर लगी तनी-सी,
लगे ऐसा जैसे मिल गया
जो सहारा था सटका
डोर का पुनः मिल रहा था,
‘अजस्र’ सहारा
हाथ और थे पर,
मिल रहा था बेहतर इशारा
फिर उड़ी आकाश में,
तब बात समझ ये आई
बिना सहारे, बिना इशारे,
न होगी आसमानी चढ़ाई।
जीवन सार समझ आया तो,
वो हवा में और अच्छे से लहराई॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|