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कुदरत से ना खेल

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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प्रकृति और खिलवाड़…

आपस में इंसान का, रहे ना सबसे मेल,
सजग हो जा रे मनवा, कुदरत से मत खेल
कुदरत का जब कहर गिरे तो, बढ़ता खूब झमेल,
जल जीवन जल श्रोत से प्यारे, बुरे खेल ना खेल।

दिनों-दिन तुम पेड़ काटकर, करते खुद पर वार,
प्रदूषण फेफड़ों में भरते, क्यों बनते खुद्दार…?
जलस्तर भूमि का घटता, बढ़ता जीवन भार,
भ्रष्टाचार जीवन में बढ़ता, घटता है रोजगार।

कहूं कथा इंसान की, जीवन है बेमेल,
नंगे पाँव चलत है कोई, कोई चलत है रेल
कोई सोवत है महल अटारी, कोई सोवत है जेल,
कुदरत का है खेल निराला, झेल सके तो झेल।

भारत अपना महान है, कुदरत का है वरदान,
सुख-सुविधा की इस भारत में, भरी पड़ी हैं खान
कोई जीयत है औरों खातिर, कोई बनत धनवान,
कुदरत का है खेल निराला, जान सके तो जान।

कहे ‘उमेश’ कुदरत से न खेलो, बात मेरी लो मान,
हरी-भरी ये धरा रहे तो, जीवन बने महान।
‘उमेश’ की बात को गांठ बांध लो, करो स्वयं का मान,
आत्मसम्मान जो खुद ही रखे, माने सकल जहान॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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