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कुछ लोग

शिवम द्विवेदी ‘शिवाय’ 
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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ज़िन्दा हूँ मैं कुछ लोग जान गए,
पागल हूँ मैं कुछ लोग मान गए
क्या हुआ यदि वो हमें न समझे,
लहज़े तो देखो खुद को जान गएl
ये दूर की बातें हैं शिवम् हर शक्ल इंसान,
बड़े किरदार का नहीं होता
खुद तो हम कुछ नहीं कर सके,
लोग ज्ञान बाँट गएl
ज़िन्दा हूँ मैं कुछ लोग जान गए,
पागल हूँ मैं कुछ लोग मान गएll

धुंए में रहने वाले ने हमें वापिस भेजा,
यहाँ कुछ तो मसला होगा
ये जो द्वेष,ईर्ष्या,कटुता और,
अहंकार लिए तुम बैठे होl
कुछ ख़ास नहीं बस ख़ाख़ हो,
फ़िज़ूल में ऐंठे हो
मैं जो इस तरह रहता हूँ,
एक ग्रामीण एक गरीब की भांतिl
मैं हूँ जमींदार,बोरे में पैसे,
जूते पर अकड़,दिमाग ठंडा रखता हूँ
मेरी परवरिश-मेरे संस्कार,मेरा रुतबा,
हैसियत खेत की माटीl
अभी भी वहम में कुछ लोग,
मुझे,ऐरा-गैरा जान रहेl
ज़िन्दा हूँ मैं कुछ लोग जान गए,
पागल हूँ मैं कुछ लोग मान गएll

उन्हें उनके वहम में रहने देता हूँ,
मैं भी खुद को पागल समझ लेता हूँ
क्या हुआ जो आम समझे कोई,
मैं चुपके से किरदार छुपा लेता हूँl
मेरे दिलो दिमाग भी मुझे खिलाड़ी जान गए
मैं ठेकेदार,लोग मज़दूर जो करे दिहाड़ी मान गए।
ज़िन्दा हूँ मैं कुछ लोग जान गए,
पागल हूँ मैं कुछ लोग मान गएll

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