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इक्कीसवीं सदी का बीसवां वर्ष

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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इक्कीसवीं सदी का नया वर्ष बीसवां,
सदियों बाद भी न ऐसा मेल मिलेगा।
इसी सदी का वर्ष बीता उन्नीसवां,
कहाँ जिन्दगी में अब वो वर्ष दिखेगा।

नये वर्ष में अब रहें ये यहीं,
बहारें न जाएं यहां से कहीं।
फिजाँ इन बहारों की अब रहे यहीं,
खिजाँ कोई वादियों में न दिखे कहीं।

भुलाना न यादों को पिछले वर्ष की,
उन्हीं से तो हम-तुम मिले थे कहीं।
शिकवे-गिले भूलकर हम सभी,
दिलों को मिला लें दिलों से कहीं।

कद्र गुजरे वक्त की सदा रहे बनी,
नया ये वर्ष भी तो मिला वक्त से कहीं।
करता हूँ अर्ज यारों जरा सुन लो सभी,
न हो कभी भी वक्त रुसवा तुमसे कहींll

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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