कुल पृष्ठ दर्शन : 229

You are currently viewing ऑक्सीजन की लूट है,लूट सके तो लूट

ऑक्सीजन की लूट है,लूट सके तो लूट

नवेन्दु उन्मेष
राँची (झारखंड)

***************************************

पहले कहावत हुआ करती थी ‘धन-धरती की लूट है लूट सके तो लूट,अंतकाल पछताएगा,जब प्राण जाएंगे छूट’, लेकिन अब तो धन-धरती की लूट की बातें:पुरानी हो गई। अब तो जिसे देखो,ऑक्सीजन लूटने में लगा हुआ है। मप्र के एक अस्पताल में जैसे ही ऑक्सीजन पहुंची,मरीजों के परिजनों ने ऑक्सीजन से भरे सिलेंडर लूट लिए। उप्र में लाठी के बल पर ऑक्सीजन लूटी गई। हरियाणा के एक मंत्री ने दिल्ली में उनके राज्य के कोटे की ऑक्सीजन लूट लिए जाने का आरोप लगाया है। मतलब साफ है प्रत्येक व्यक्ति प्राण छूट जाने से पहले ऑक्सीजन लूट लेना चाहता है। ऑक्सीजन का हाल यह है कि एक राज्य दूसरे राज्य पर ऑक्सीजन लूट लेने का आरोप लगा रहे हैं। ऑक्सीजन लूट कांड को सुलझाने के लिए मुख्यमंत्रियों को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। खबर तो यह भी है कि कुछ पैसे वालों ने ऑक्सीजन का सिलेंडर खरीदकर अपने घरों में रख लिया है,ताकि जरूरत पड़ने पर वे इसका इस्तेमाल कर सकें। एक समय था कि जो लोग घोड़े-हाथी पालते थे समाज में लोग उन्हें सम्पन्न मानते थे। इसके बाद समय बदला तो गाड़ी-मोटर रखने वाले लोगों को लोग सम्पन्न मानने लगे। अब तो ऑक्सीजन सम्पन्नता की प्रतीक मानी जाने लगी है। अब तो समाज में खतरा इस बात का बढ़ गया है कि घरों में ऑक्सीजन के लुटेरे कभी भी आ धमक सकते हैं और ‘शोले’ फिल्म के गब्बर सिंह की तर्ज पर कहेंगे-‘ये ऑक्सीजन मुझे दे दे ठाकुर।’ तब आप कहेंगे-‘नहीं मैं इसे दे नहीं सकता।’ ऐसी स्थिति में वे आपके घर से ऑक्सीजन लूटकर ले जाएंगे। खतरा इस बात का भी है कि अगर आप सड़क पर अपने परिजन के लिए ऑक्सीजन लेकर जा रहे हों और कोई झपट्टामार गिरोह का लुटेरा आपसे ऑक्सीजन झपट कर ले भागे। इसकी प्राथमिकी दर्ज कराने आप थाने में जाएं तो संभव है कि थानेदार आपसे कहे कि अभी हम भारतीय दंड संहिता की उस धारा की जानकारी हासिल कर रहे है जिसमें लिखा हो कि अगर ऑक्सीजन लुट जाए तो ऐसे लुटेरों के खिलाफ कौन-सी धारा लगाई जाएगी। मुझे लगता है कि भारतीय दंड संहिता बनाने वालों ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि देश में ऑक्सीजन की भी लूट हो सकती है,नहीं तो वे इसके लिए भी कोई न कोई धारा अवश्य बना देते।
‘बाबी’ फिल्म का एक गीत है-‘न चाहूं, सोना-चाँदी,न चाहूं हीरा-मोती,ये मेरे किस काम के,देना है दिल दे बदले में दिल ले’,लेकिन अब तो कह रहे हैं-‘न चाहूं सोना-चाँदी,न चाहूं हीरा-मोती,देना है ऑक्सीजन दे,बदले में बिल ले।’
अब तो प्रेमिका भी उसी प्रेमी से प्रेम करना पसंद करेगी जो उसे एक ऑक्सीजन का सिलेंडर दे सके। मेरा तो मानना है कि आने वाले समय में लोग दहेज में यह भी शर्त रख सकते हैं कि आप ऑक्सीजन का सिलेंडर देंगे तो मैं अपने बेटे की शादी आपकी बेटी से करने को तैयार हूँ।
अगर तुलसीदास को पता होता कि आने वाले समय में ऑक्सीजन की भी मांग बढ़ेगी तो वे कब का लिख जाते-‘चित्रकूट के घाट पर भई मरीजन की भीड़,तुलसीदास ऑक्सीजन भरें,बांटें उसे रघुवीर…।’

परिचय–रांची(झारखंड) में निवासरत नवेन्दु उन्मेष पेशे से वरिष्ठ पत्रकार हैं। आप दैनिक अखबार में कार्यरत हैं।

Leave a Reply