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कोई मानवता नहीं

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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बेकसूरों की जान कब तक लेते रहोगे,
हाथों में बंदूक लिए कब तक आंतक फैलाओगे ?
अरे आतंक के तुम हो काले चेहरे,
तुम्हारे अंदर कोई मानवता नहीं है।

गोली-बारूद के ढेर पर लड़ाने वालों,
मुँह में नकाब पहनकर तुम नापाक हरकत मत करो
तुम कोई अच्छा काम नहीं करते हो,
बेचारे मासूम बच्चों, महिलाओं व पुरूषों को मारते हो
तुम्हारे अंदर कोई मानवता नहीं।

तुम्हारा धर्म खण्डित हो चुका है,
तुम्हारा ईमान बिक चुका है
चंद पैसों के गुलाम बन कर,
लोगों को मारने वालों तुम नरक में ही जाओगे
तुम्हारे अंदर कोई मानवता नहीं।

रंग-बिरंगे इस गुलशन में तुम्हारा चेहरा काला है,
तुम आंतक के बदनुमा दाग हो।
तुम मानवीय मूल्यों के झरण के साथी,
तुम्हारे अंदर कोई मानवता नहीं॥