हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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उठानी तो पालकी थी कहारों के कंधों पर,
कहां तो अर्थी बाप के कांधों से उठाई गई
माँ-बाप का दर्द तो समझ में आता है प्रभु,
पर इस बच्चे की पीड़ा में बिरादरी रुलाई गई।
दर्दाती चिता की अग्नि थी हमने देखी,
वह धीरे से इस निर्दोष को जलाती रही
जान पड़ता था मानो वह विकराल रूप,
आज शान्त होकर इस को सुलाती रही।
तूने कहां जना कोई निज गर्भ से मालिक ?
तेरे लिए तो यह जन्म-मरण एक खेला है
तू क्या जाने इस दुखियारी माँ का दर्द प्रभु ?
इसने जवान बेटे की मौत का दर्द कैसे झेला है ?
विषपान किया बेचारे उस जवान बेटे ने,
गुनाह यह था कि उसने था प्यार किया
प्रियतमा की प्रीत ही लील गई जिंदगी,
जल्दबाजी में था खुद को ही मार दिया।
वह जब चीखती है तो खलेजा है फटता,
उसके हर आँसू ने मुझको संवेदन किया
वह चिलाती है बेचारी छाती को पीट कर,
मेरे बच्चे, ये तूने क्यों और क्या कर दिया ?
संसार क्या जाने कि प्रेम क्या होता है ?
दैहिक आकर्षण को ही प्यार कह दिया
मन भर जाता है इक-दूजे से जिस दिन,
उस दिन खत्म प्रेम व किनारा कर लिया।
खूब समझाता हूँ मैं नई पीढ़ी को ‘बच्चों!’,
प्रेम समर्पण है कोई बच्चों का खेल नहीं
लारों-लप्पों में किसी को उलझाए रखना,
फिल्मों का अभिनय है, प्रेम का मेल नहीं।
छः साल पुरानी प्रेयसी ने विषपान किया,
फिर उसी ने था पुलिस को बयान दिया
वह ब्लैकमेल करता था हमको जी हजूर,
बेचारा डर गया था, चुपके से जहर पिया।
क्या यही अंजाम है आज की मुहब्बत का ?
जो प्रियतमा ने ही प्रियतम को धोखा दिया ?
तेरी दुनिया का राज तू ही जान ओ मालिक,
किसने वफ़ा की और किसने था धोखा किया ?
मेरे लिए तो दोनों ही अभी बच्चे हैं बेचारे,
नादान बेखबर दोनों इक-दूजे को चाहते थे
माँ ने ही अड़ाया था रोड़ा शादी की राह में,
बेटी की माँ के रोड़ों को ही लोग बताते थे।
जवान बेटे की मौत की पीड़ा क्या होती है ?
यह तो बेचारा बाप जाने या फिर माँ जाने।
प्रेम इबादत है या कि फिर सुन्दर-सा धोखा ?
तुम हमें बताओ हे मालिक ! हम क्या मानें ?