सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…
अदंर बाहर में धुँधला-सा,
तम फैला चहुँ दिशि गहरा -सा
मैं क्यों कह दूँ अम्बर रोता,
और क्यों पूँछू क्यों उलझा-सा।
वृक्ष कटे सुलग रही धरती,
वाहन बोझ सिसक रही धरती
उद्योगों से जल वायु प्रदूषित,
स्वच्छ हवा को तरस रही धरती।
है विवेक नित नूतन रचना,
सुख वैभव की खींच अल्पना
चला जा रहा स्वप्न लोक में,
आगत के भय से तुम डरना।
सोचो आने वाले कल को,
हम क्या-क्या उपहार में देंगे ?
अपने सुख में भूल गए सब,
क्या उनको सौग़ात में देंगे ??