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क्षेत्रीयता को नकारा, विकास को स्वीकारा

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव-एक विश्लेषण…

देशभर की नजर में देशभक्ति और प्रतिष्ठा का परिचायक रहे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव २०२४ के नतीजे आने के बाद सब इसकी चीर-फाड़ करने में व्यस्त हैं कि आखिर राज्य की राजनीतिक दिशा और जनता के रुझानों में महत्वपूर्ण बदलाव का ऐसा नतीजा कैसे आया ? राजनितिक अनुभव, अनुमान और संकेत अनुसार भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया, परन्तु विपक्षी महाविकास अघाड़ी (एमविए) को अपने प्रदर्शन के चलते पराजय मिली है।

अब बात इस चुनाव में मुद्दों की तो विकास, सुशासन, और सामाजिक मुद्दों ने जनता के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मजबूत कार्यकर्ता और संगठन की बनावट अनुसार भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने कुल २८८ सीटों में से दो-तिहाई से अधिक पर एकतरफा कब्जा किया, जिससे राज्य में उनकी स्थिति मजबूत हो गई है। इधर, विपक्षी गठबंधन (शिवसेना-उद्धव गुट), कांग्रेस और एनसीपी-शरद पवार गुट शामिल) स्वयं की आशा अनुसार अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सका। इसका नतीजा यह मिला कि क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रभाव जनता ने एकदम हरियाणा जैसा सीमित कर दिया, और कमल ही खिला।

◾जीत के कारण-
🔹विकासवादी कार्यक्रम-
अगर भाजपा की सोच अनुसार देखा जाए तो भाजपा और सहयोगी दलों ने चुनाव प्रचार के दौरान बुनियादी ढांचे, रोजगार सृजन एवं सामाजिक कल्याण योजनाओं को ही जनता के बीच अपनी विचारधारा एवं रणनीति अनुसार प्रमुखता दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपनी सरकार की योजनाओं को जनता तक प्रभावी ढंग से पहुँचाया, जिसमें सभी प्रचार माध्यम और कार्यकर्ता मजबूत कड़ी बने।

🔹बँटा हुआ विपक्ष-
चुनाव के पहले, चुनाव के समय अंत समय तक एमविए (अघाड़ी) के भीतर वैचारिक असहमति और नेतृत्व की स्पष्टता की कमी सबने देखी। मीडिया से लेकर आम मतदाता तक ने इसे सरलता से भाँपा और उनके प्रदर्शन को कमजोर आँका। शरद पवार के दल में हुए विभाजन के साथ ही शिवसेना की उतरती लोकप्रियता ने भी इसमें पूरा योगदान दिया। परिणाम सबके सामने है और संकेत भी कि जनता नेताओं-दलों की गुलाम नहीं है।

🔹स्थानीय मुद्दों पर पकड़-
भाजपा सालभर अभियान और संगठन पर काम करती है, इसलिए मुद्दों पर भी पूरा ध्यान होता है। कांग्रेस जब तक संगठन को बेहतरीन नहीं बनाएगी, तब तक ईवीएम कोसने से कुछ नहीं होगा। इस चुनाव ने फिर साबित किया कि विपक्षी दल किसानों, शहरी मतदाताओं और महिला समूहों के बीच अपनी पकड़ नहीं बना सका, जबकि भाजपा ने इसे मजबूत किया। संगठन ने खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी जन हितैषी योजनाओं और दिए जा रहे अनुदान पर जन समर्थन हासिल किया।

◾विपक्ष की कमजोरी-
🔹मतदाताओं पर पकड़ कमजोर-
राज्य के चुनाव में महाविकास अघाड़ी ने बेरोजगारी, किसान संकट और महंगाई जैसे मुद्दों को उठाया, लेकिन इन पर जनता को संगठित करने में विफल रहा। इतना ही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री वाली शिवसेना (उद्धव गुट) दल की परंपरागत मराठी मतदाताओं पर पकड़ कमजोर हुई है। पहले अकेले और फिर भाजपा के साथ रहकर जो मजबूती इसने पाई थी, वह जमीन अब खोखली साबित हुई है। यूँ कहिए कि कांग्रेस-एनसीपी की पुरानी छवि को बदलने की इनकी कोशिश काम नहीं आई है। इस बात को शरद पवार का दल भले ही नहीं समझे, किंतु उद्धव ठाकरे जितना जल्दी समझ लें, उनका उतना ही नुकसान कम होगा।

🔹विकास से दूरी-
कहना अनुचित नहीं होगा कि गारंटी और मुफ्तखोरी की आदत के बावजूद इस चुनाव ने स्पष्ट कर दिया है कि महाराष्ट्र के मतदाता भी अब विकास और स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं। यही वजह रही कि स्थानीय और जातिगत राजनीति का प्रभाव जनता ने अपना दिमाग चलाकर घटा दिया। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो युवा और शहरी मतदाताओं से महायुति को खुला समर्थन नहीं मिलता।

🔹आमजन से जुड़ाव-
भाजपा की सहयोगी रही शिवसेना और उनके ही दल की टूटन के बाद यह चुनाव नाक का बाल बना हुआ था, जिसमें भाजपा की नाक कटी नहीं है। भाजपा ने की इस महा-जीत से आंकलन और उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य में अगले ५ वर्ष के लिए सुशासन वाली स्थिर सरकार आई है, जो विकास को प्राथमिकता देकर लोगों का जीवन स्तर ऊँचा करेगी। वर्तमान की जो स्थिति है, उसमें महायुति गठबंधन को ग्रामीण क्षेत्रों के संकट, बढ़ती महंगाई और विशेष रूप से आम आदमी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु बहुत से ठोस कदम उठाने होंगे। संगठन से कमजोर और अनेक मुगालते पालकर इस बार भी परास्त विपक्ष के लिए यह हार फिर आत्ममंथन का अवसर है, क्योंकि दिल्ली सामने है। जमीनी स्तर पर सक्रियता बढ़ाते हुए महाविकास अघाड़ी को अपने आंतरिक मतभेद सुलझाकर एक सशक्त विकल्प के रूप में उभरना होगा, और आमजन की जरूरत बनना पड़ेगा। दलीय नेतृत्व को पक्षपात से परे इस पर अमल करना होगा कि आमजन से कैसे जुड़ाव बढ़ाया जाए।

◾निष्कर्ष-
कुल मिलाकर महाराष्ट्र विस चुनाव का परिणाम भाजपा और उसके सहयोगियों के लिए बड़ी राजनीतिक जीत है, बल्कि उनकी विकासवादी सोंच पर जनता की मुहर भी है। यह इस बात का साफ इशारा एवं सहयोग है कि जनता की बदलती प्राथमिकताओं को दलों को समझना ही पड़ेगा। यानी अगर कोई दल राज्य में स्थिरता और प्रगतिशील नीतियों पर अधिक ध्यान नहीं देगा तो जनता उसे पीछे कर देगी। विपक्ष के लिए यह परिणाम चुनावी रणनीति में और अधिक सुधार और संगठन पुनर्गठन का संकेत है, जिसे समझना उनके लिए लाभदायी होगा।