डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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दोनों बहनें शहर में खिलौने बेचकर लौट रही थीं। दिसम्बर की साँझ ढलने वाली थी। दोनों बहन एक-दूसरे का हाथ पकड़े तेज गति से चल रही थीं।
बीमार पिता की जगह कुछ दिनों से वे दोनों बहनें खिलौना बेचने शहर आ रहीं थीं। आज बाजार में उनको कुछ देर हो गई। साँझ का अंधेरा बढ़ता जा रहा था,साथ ही दोनों बहनों का डर भी बढ़ता जा रहा था।
अक्सर शहर में किसी भी लड़की के साथ बलात्कार,या हत्या होना जैसे रोजमर्रा की घटना हो गई है। अभी वे पैदल जा ही रही थीं कि,बाइक सवार २ लड़के वहां आ धमके और छेड़खानी करने लगे। दोनों बहनें बिना कुछ सोचे-समझे भागने लगीं। भागते-भागते वे श्मशान पहुँच गईं।
श्मशान में घुप्प अँधेरा था। चारों तरफ सियारों के रोने की आवाजें आ रही थी। छोटी बहन एक पेड़ के नीचे रुक गई,और बोली-“दीदी,यहां से चलते हैं। यहां भूतों का डेरा है। मुझे डर लग रहा है।”
बड़ी बहन बोली,-“अरे,पगली,ये भूत-प्रेत तो मर चुके हैं। ये कुछ भी नहीं करेंगे। हमें तो ज़िंदा भूतों से डरना है। इस शहर में जिन्दा नर पिशाचों से हम लड़कियों को बड़ा खतरा है। पता नहीं,कब हम पर हमला कर दें।” यह कहती हुई वे दोनों बहनें पूरी निर्भीकता के साथ श्मशान में आराम से बैठ गईं।
परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।