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आधुनिक जीवन में प्रेम का महत्व

डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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जो अन्तर जड़ और चेतन में है,वही फर्क प्रेम और प्रेमविहीनता में है। प्रेमरहित मानव पाषाण तुल्य है। एक बात और..प्रेम तो पाषाण को भी प्राणवान बना देता है। कई बार पहाड़ों पर बनी पत्थरों की आकृति जो उभरती है तो लगता है कि पत्थर भी मुहब्बत करते हैं।
प्रेम क्या है ? सर्वप्रथम इस भ्रम से पर्दा हटाना बहुत आवश्यक है। आप जिनसे मिलोगे,वे प्रेम की परिभाषा अलग-अलग देंगे,पर कितनी सही है यह तो परिणाम और अनुभव ही बताएगा। क्या प्रेम में मिलन ही मंजिल है ? तड़पना प्रेम है या याद करते रहना ? इन बिंदुओं पर प्रकाश डालकर ही प्रेम का स्वरूप स्पष्ट हो सकता है। यहां यह बात कुछ प्रेमीजनों के उद्धऱणों से स्पष्ट करते हैं। कवि घनानंद ने सुजान वैश्या से प्रेम किया था। बाद में धोखा मिला तो…खैर छोड़िए। उन्होंने प्रेम पर कहा-
अति सूधो स्नेह को मार्ग,
जहां नेकु सयापन बांक नहीं।
तुम कौन-सी पाती पढ़े हो लला,
मन लेत हो देत छटांक नहींll
अर्थात प्रेम का मार्ग अति सीधा है। इसमें जरा भी टेढ़ापन नहीं होता। हे लला न जाने तुम कौन-सी परिपाटी को जानते हो कि मन( मण और मन)लेकर छटांक भी नहीं देते।
इससे सिद्ध होता है कि,प्रेम का सीधा और सरल रास्ता होता है। कबीर जी ने कहा कि-प्रेम कोई खाला का घर नहीं है। शीश देकर ही इसे पाया जा सकता है।
किसी ने कहा कि-आग का दरिया है और डूब के जाना है। इससे यह स्पष्ट है कि प्रेम निभाना अति कठिन है।
कबीर जी ने कहा है कि-प्रभु निराकार है। उनके प्रेम को भी निराकार माना है,परंतु उससे विभिन्न संबंधों को जोड़कर अपना प्रेम प्रकट किया जा सकता है।
मीरा ने श्री कृष्ण की मूर्ति को माध्यम बनाकर साकार संबंध में देखा, किन्तु साकार भी प्रेम नहीं होता। यदि प्रेम साकार तक सीमित होता तो उसका अंत वासना पर नहीं होता।
जब मन में बसी छवि साकार हो उठती है,बिना प्रिय की उपस्थिति भी,तब वहां प्रेम है। प्रेम साधना तो है साधन नहीं। प्रेम तो खुशबू है ,फूल नहीं। प्रेम न घुटकर मरना है,न ही रोदन है। प्रेम न निराकार है, न साकार है। प्रेम अनुभूति है,एक एहसास है। जीवन अगर अंगूठी है तो प्रेम नगीना है। मिलन पर प्रेम का अंत होता है,और विदाई पर प्रेम यादों में बसकर अमर हो जाता है।
प्रेम एक भाव है जो अमूर्त होता है,अतः तन की प्राप्ति प्रेम नहीं है।प्रेम विश्वास सिखाता है। प्रेम दाता बनाता है,प्रेम सहनशीलता सिखाता है। प्रेम मित्रता की कसौटी है,प्रेम तो पाषाण को प्राणवान बना देता है,इंसान को भगवान बना देता है। प्रेम एक अलौकिक आनंद है,जिसे पाकर मनुष्य मन ही मन मुस्कुराता रहता है।
प्रेम वह अनंत सरिता है,जो प्रभु रूपी सागर में आकर विलीन हो जाती है। प्रेम तो अपने-आपमें पूर्ण है,कोई जाने तो। बंद आँखों में भी साकार हो चेहरे पर नजर आता है।
आज का जीवन स्वार्थलिप्त,चकाचौंधपूर्ण और द्वेषयुक्त होता जा रहा है। ऐसे परिवेश में प्रेम ही ऐसी संजीवनी है,जो मूर्छित होती मानवता को पुनर्जीवित कर सकती है। प्रेम के अभाव में पूरी धरती श्मशान बन जाएगी,प्रेम ही संसार का स्पंदन है;प्रेम के अभाव में सर्वत्र जड़ता व्याप्त होगी।
आज के हिंसात्मक माहौल में प्राणीमात्र के प्रति प्रेम संबंध में प्रेम का चुंबक ही सबको संजोए रख सकता है। रिश्तों में चमक लाने के लिए प्रेम की स्वर्ण परत लगानी जरूरी है।
यदि समाज के रथ में नर-नारी दो पहिए हैं,तो प्रेम ग्रीस(स्नेह)का काम करता है,ताकि रथ सुचारू ढंग से गतिशील रहे। प्रेम के अभाव में रिश्ते सूखे पत्तों की भांति सुलग जाएंगे। मानव हृदय का पोखर सूखकर दरार युक्त हो जाएगा,मानवता का कमल सूख जाएगा, नफरत के काँटे इंसानियत के पैरों को लहूलुहान कर अक्षत-विक्षत कर देंगे। अतः,चारों तरफ घृणा-द्वेष व हिंसा-सांप्रदायिकता की ज्वाला को प्रेम के शीतल जल से ही शांत किया जा सकता है। इतना ही कहूंगा-
प्रेम है कल्पतरू जिसके नीचे
सर्वकामनाएं हो जाती हैं पूरी,
प्रेम है बहता नीर जो किनारों को
मिलाकर दूर करता है दूरी,
माना प्रेम दृष्टि से जन्म लेता है
पर जुदाई में अमर हो जाता है,
प्रेम तो मन के मंदिर रहता हुआ
प्रभु का दिव्य रूप कहलाता है।<blockquote><span style="color: #ff0000;"><span style="color: #0000ff;"><strong>परिचय–</strong></span>डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नामचंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।

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