डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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गांजा अफ़ीम ड्रग अल्कोहल,
तम्बाकू नशा जो लेते हैं
लत तम्बाकू धूम्रपान ज़हर,
गम गलत मौत जन पाते हैं।
मदमस्त यौवन शराब नशा,
सरकार सुपोषित होते हैं
खुलेआम बेचते नशा ज़हर,
लोगों को गम दे जाते हैं।
उन्मुक्त नशा व्यापार जहां,
नव स्रोत अर्थ बन जाते हैं
मशगूल नशा धन धान्य विरत,
सर्वनाश स्वयं कर जाते हैं।
गम गलत करते लोग यहाँ,
पुरुषार्थ कहीं खो जाते हैं
अपराध बोध गम मानस में,
उत्साह विमुख दु:ख पाते हैं।
कटु वचन श्रवण परमुख पीड़ा,
असहिष्णु जल्द बन जाते हैं
अपमान मान चित घाव पीड़,
खो मति विवेक अकुलाते हैं।
सुख-दु:ख जीवन जीवन्त यहाँ,
दुर्लभ लम्हों को पाते हैं
उल्लास नवल पथ विघ्न कॅंटिल,
सद्मार्ग कीर्ति रच पाते हैं।
गम सितम को जख़्म देता,
आहत-राहत पथ पाते हैं
जो कर्मवीर संकल्प अटल,
हर गम से पार लगाते हैं।
खायी चोटें जो हो अपना,
दिल तोड़ गम दे जाते हैं
पहचान किन्तु हो अपनापन,
सावधान सुपथ बढ़ जाते हैं।
छोड़ो सब गम कर मन भाया,
रच सिद्धि विजय वे पाते हैं।
नव सीख जख्म गम पा जीवन,
सुख शान्ति कीर्ति जग पाते हैं॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥