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गर्मी में…

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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झुलस रहे हैं पौधे सारे
झुलस रही हैं सभी लताएँ,
सारे तन को जला रही हैं
दक्षिण की ये गर्म हवाएँ,
जल से अपनी प्यास बुझा ले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेl

जेष्ठ महीना तपती धूप
सूख गये हैं सारे कूप,
बालू रेत में चला ना जाए
कैसे अपनी जान बचाएं,
पावों में पड़ जाएँ छाले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेl

देखो पशु-पक्षी बेचारे
सारे यूँ ही डोल रहे हैं,
खोल रहे हैं मुँह को अपने
सूखे हलक प्यास के मारे,
कोई कैसे इन्हें सम्भाले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेl

गर्म थपेड़े लू चलती है
धरती अग्नि-सी जलती है,
बड़ी दूर से चलकर आये
लगते हो थोड़े घबराये,
ठंडी छाया में बैठ बावले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेl

प्रकृति ने ये पेड़ उगाये
अगर पथिक थोड़ा थक जाए,
इनकी ठंडी शीतल छाया
निर्मल हो जाएगी काया,
आकर अपनी थकन मिटा ले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेl

चरवाहे छाया में बैठे
पैर पसारे सब हैं लेटे,
जंगल में सब ढोर चराये
अलगोजों पर गीत सुनाये,
आजा तू भी तान लगा ले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेl

सूख गये सब ताल-तलैया
प्यासी डोले गैया मैया,
पनघट पर भी कोई न जाए
कैसे कोई प्यास बुझाये,
आजा हमसे भी बतिया ले…
आ राही थोड़ा सुस्ता लेll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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