दिपाली अरुण गुंड
मुंबई(महाराष्ट्र)
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गुरु पूर्णिमा विशेष…..
माता-पिता ही प्रथम गुरु,
जिनसे होती शिक्षा शुरू।
कभी डाँट-फटकार सुनाते,
जैसे मूर्तिकार मूर्तियाँ बनाते।
मार्ग दिखाए वह प्रकाश स्तंभ-सा,
मानो कठिनाइयों में अडिग चट्टान-सा।
गुरु और गोविंद में भी गुरु को मान,
क्योंकि,गुरु से होती गोविंद की पहचान।
गुरु मिले तो सब जग प्यारा,
गुरु बिन तू,सारे जग से हारा॥