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चलो चलें स्कूल हम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आओ हम सब बच्चे भारत,
नौनिहालों साथ स्कूल चलें।
अ आ इ ई क ख ग घ पाठ ज्ञान,
हम भारतीय इन्सान बनें॥

ज्ञानोदय नव भोर किरण पथ,
नव विहान ज्ञान अनुकूल बने।
शिक्षा का आलोक चरित निज,
शील धीर वीर सच मूल बनें।

शिक्षा संयम साहस सम्बल,
दुर्गम बाधा पथ शान बढ़ें।
हम बच्चे भारत भविष्य फल,
शिक्षित समाज मुस्कान बनें।

विश्वास स्वयं हो पढ़-लिख कर,
कर्त्तव्य बोध परमार्थ बने।
चलो चलें स्कूल हम मिलकर,
पुरुषार्थ सार्थ धर्मार्थ बनें।

हम अबोध बच्चे मन निश्छल,
नवांकुर पौध हम देश बनें।
गौरैया बन नीलगगन उड़,
सम चन्द्रकला परिवेश बने।

शिक्षा जीवन महारत्न धन,
अधिकार स्वयं अधिकार करें।
निशिदिन अविरत अभ्यासी तप,
अक्षर अक्षय भंडार बनें।

कठिन साधना शिक्षा जीवन,
रुचि तत्पर साधक यार बनें।
विनय शील गुरु शरण चलें हम,
पी ज्ञानामृत गलहार बनें।

बेटा या बेटी बच्चे हम,
स्कूल जीवन आधार बनें।
संस्कार आचार समुन्नत,
हम नवयौवन का उपहार बनें।

ज्ञान प्राप्ति हो कठिन परिश्रम,
आलस दुश्मन संहार करें।
खेलें कूदें पढ़ें लिखें हम,
चहुँ प्रगति शौर्य यश धार बनें।

कोमल अभिनव बचपन भारत,
माँ मानसरोवर हंस बनें।
करें राष्ट्र स्नेहिल माँ आरत,
भारत बाधक खल कंस हरें।

स्कूल चलें हम सूर्योदय बन,
धीरे ख़ुद ज्ञान आलोक भरें।
आदर्श निपुण सुपात्र वतन,
तिरंगा शान खल शोक हरें॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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