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चिराग बुझा दे हमें जरूरत नहीं

मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’
जयपुर(राजस्थान)
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चिराग कब अँधेरों की कमजर्फ़ साजिशों से छला हैl
जब तक रहा दम,चीरकर तम शिद्दत से जला हैl

फासले मंजिल के दरमियाँ कम ही पड़ते रहे हैं सदा,
दिल में बुलंद हौंसलों का जुनून जब भी पला हैl

ताकेगी उनको रोशनी की हसीन लड़ियाँ शौक से,
आकाश में दल जुगनुओं का फिर उड़ चला हैl

नींद आ नहीं रही उसे कई शर्द रातों से शायद,
दिल में ख्वाब फिर से मंजिलें मकसूद का पला हैl

क्यूँ कर रहा है तू इतनी पैंतरेबाजी ए चालबाज,
हालात की गिरफ्त में मुझे दिखता तेरा गला हैl

ना सुकून से सोने देती है,ना चैन से जीने भी,
उसकी याद है कि ‘मनु’ कोई आफ़त ए बला हैl

उससे कह दो कि चिराग बुझा दे हमें जरूरत नहीं,
कितने अर्से से फ़कत रोशनी के लिए दिल जला हैll

परिचय-मनोज कुमार सामरिया का उपनाम `मनु` है,जिनका  जन्म १९८५ में २० नवम्बर को लिसाड़िया(सीकर) में हुआ है। जयपुर के मुरलीपुरा में आपका निवास है। आपने बी.एड. के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) की भी शिक्षा ली है। करीब ८  वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैं। लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी श्री सामरिया करते हैं। आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं। मनु  कई वेबसाइट्स पर भी लिखने में सक्रिय हैंl साझा काव्य संग्रह में-प्रतिबिंब,नए पल्लव आदि में आपकी रचनाएं हैं, तो बाल साहित्य साझा संग्रह-`घरौंदा`में भी जगह मिली हैl आप एक साझा संग्रह में सम्पादक मण्डल में सदस्य रहे हैंl पुस्तक प्रकाशन में `बिखरे अल्फ़ाज़ जीवन पृष्ठों पर` आपके नाम है। सम्मान के रुप में आपको `सर्वश्रेष्ठ रचनाकार` सहित आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैंl  

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