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छलावा

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जिन्दगी में जिन्दगी के साथ रहना है जरुरी,
सत्य राहों पर सतत निर्बाध बहना है जरूरी।

राह में बाधाएं तो आती ही रहती है निरंतर,
निकल आती हैं उन्हीं बाधाओं से ही राह अक्सर।
मिल ही जाता अपना कोई राह में चलते हुए ही,
गाँठ खुलकर दुश्मनी की मेल हो जाता परस्पर।
अपने मन के भाव सारे व्यक्त करना है जरूरी,
सत्य राहों से सतत…

जिन्दगी की उलझनों में भूल जाता हैं सभी कुछ,
दोराहे से जाएँ किस मग याद आता है नहीं कुछ।
भ्रमित होकर पाँव रखता जाने मंजिल है कहां पर,
अग्रसर रहता है पथ पर सोचता जाता कभी कुछ।
इन अंधेरों से उजाले का निकलना है जरूरी,
सत्य राहों पर सतत…

जिन्दगी है इक छलावा जाने कब यह छोड़ जाए,
साँस का पंछी अचानक ही ये काया छोड़ जाए।
कर्म पर करना भरोसा पाओगे जैसा करोगे,
अपना होकर भी न जाने कौन कब मुँह मोड़ जाए।
जानते सच्चाई हैं सब किंतु कहना है जरूरी,
सत्य राहों पर सतत…

जो मिले रिश्ते सभी का हमको है निर्वाह करना,
बन के पारस सबकी नज़रों से हमें अब है गुज़रना।
हैं सभी अनमोल,जीवन फिर कभी पाएँ न पाएँ,
ज़िन्दगी के इस सफ़र में स्वर्ण-सा हमको चमकना।
अपने सद् व्यवहार से हमको निख़रना है ज़रूरी,
सत्य राहों पर सतत निर्बाध बहना है ज़रूरी…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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