कुल पृष्ठ दर्शन : 719

You are currently viewing चंचल मनवा

चंचल मनवा

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
******************************

मन के तो हैं पंख हजारों,
मन पर लगा ना पहरा है
चंचल मनवा उड़ता-फिरता,
एक जगह कब ठहरा है।

बड़ा कठिन है वश में करना,
ऋषि-मुनि ज्ञानी भी हार गए
लाख लगाया अंकुश इस पर,
फिर भी मन से हार गए।

चैन कहाँ आता है मन को,
जब मृग-तृष्णा भरमाती है
बढ़ जाती है घोर निराशा,
फिर अन्तर्मन को तड़पाती है।

तन-मन की दो दौलत में,
मन की दौलत बड़ी महान
मन ही ले जाता है पतन को,
मन ही तो करता है उत्थान।

झांक ले अपने मन के अंदर,
मन ही तो है तेरा दर्पण
धर्म चला तू, या चला अधर्म,
किस राह पर किया समर्पण।

इच्छाएं तो हैं यहाँ अनन्त,
इसका कोई छोर ना अंत
चाहत बड़ी तड़पाती मन को,
समझा लो निज अन्तर्मन को।

मन काम, क्रोध, लोभ का डेरा,
धर्म भाव और प्रीत भी मिले
मन, धर्म-भाव में लग जाए,
तो समझो मन को ईश मिले।

जीवन है बहुत संघर्ष भरा,
इसमें दु:ख-सुख, विरह-मिलन।
ज्ञान के दीप जलाकर मन में,
महका लो फिर अपना जीवन॥