ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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देखा-देखी बन नकलची हम भी क्या-क्या मनाते हैं,
अपने उत्सव व्रत त्योहार,उस पर विदेशी घातें हैं।
ओछी फीकी आयातित छोड़ो विदेशी संस्कृति,
ये भारत संस्कार जड़ पर प्रहार करने आते हैं।
‘ वैलेंटाइन’ कहते कहाँ एक ‘रोज डे’ तुम ले आए,
और यहाँ तो फगुआ झरे,फूलों लगी बरसातें हैं।
घी पेड़ा खोया कचौरी खाते सभी हलुआ पूरी,
वो टुच्ची चॉकलेट दिखा,देखो हमे ललचाते हैं।
‘प्रपोज’ मना बेशर्मी से,न पर बोतल तेजाब लिए,
शेर सनातनी तो सीधे रिश्ते लिए घर जाते हैं।
तुम एक दिन का ‘हग’,’किस डे’ मना दुर्गंध फैलाते हो,
प्रेम सिंदूरी जीवन,हम जन्मभर झप्पी पाते हैं।
साथ सात दिन घूम फिर कर रिश्तों की मटियामेट की,
हम सात फेरे क्या घूमे,जन्मों रिश्ते निभाते हैं।
आर्य पुत्रियों दूर रहो इन टेढ़ी बुद्धि वालों से,
गौरव गरिमा समझो आप,हम करवाचौथ मनाते हैं॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।