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भूल-भुलैया

अंजना सिन्हा ‘सखी’
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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है रिश्तों की भूल-भूलैया, साँसों का ताना-बाना।
सुख फूलों-सा दु:ख काँटों-सा, क्या रोना, क्या इतराना॥

ऊपर वाला भांति-भांति का, सबका लेख बनाता है।
जिसने जितनी हवा भरी है, वह उतना चल पाता है॥
किसका कितना कहां ठिकाना, ये भी है किसने जाना,
है रिश्तों की भूल-भूलैया, साँसों का ताना-बाना…॥

सत् सेवा संघर्षशील का, दामन मैला मत करना।
धन की चकाचौंध में प्यारे, दीनों की झोली भरना॥
जग में नाम शेष रह जाए, बाकी सब कुछ बेगाना,
है रिश्तों की भूल-भूलैया, साँसों का ताना-बाना…॥

माना जीवन बहुत कठिन है, फिर भी है चलते जाना।
फूलों से भी अपना नाता, काँटों से भी याराना॥
‘सखी’ किराए का घर सबका, इक दिन छोड़ चले जाना,
है रिश्तों की भूल-भूलैया, साँसों का ताना-बाना…॥