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झोली में तेरी क्या

माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (मध्यप्रदेश)
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माँ का आशीष है,
पिता की दुआ है
उनसे ही यह जीवन,
सुखमय हुआ है
अब भी पूछेगा तू,
झोली में मेरी क्या है ?

कुछ छुपे हुए अपने हैं,
पूरे करते मेरे सपने
घबराकर हार कर लगता,
कठिन क्षण लगे तपने
नेह की ठंडी धार बोली-
झोली में तेरे क्या है ?

उदास हो भागता नहीं,
तेरे समझते तेरी अनकही
मनोबल तेरा बढाता कोई,
अनछुई प्रेमधार बही
स्नेही बहती गंगा कहती-
झोली में तेरे क्या है ?

कुछ बातें अनकही हैं,
मैंने सुनी उनने कही है
हृदय धड़के प्रेममय,
अनजानों की प्रीत बही है
मानवता पल-पल कहती-
झोली में तेरे क्या है ?

आस्था और विश्वास है,
देने की चाह समर्पण पास है
लुटा दूं खुशी अपनी औरों पर,
मेरे लिए तो हर जीव खास है।
अब भी जानना चाहोगे प्यारों,
झोली में मेरी क्या है!!

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