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तुम मेरे कासिद हो,फ़रिश्ते हो

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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मैं तुम्हें इस तरह से प्रेम नहीं करती,
जैसे मैं करती किसी हाड़-माँस के पुतले को।
मैं तुम्हें इस तरह भी प्रेम नहीं करती,
जिस तरह करती किसी देव को
दिव्य गुणों से भरपूर।
मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ ऐसे-
जैसे किसी बादल को,पेड़ को,नदी को
झरने को,पहाड़ को या फिर किसी जुगनू को

न मैं भागती रहती हूँ तुम्हारे पीछे,
न ही तुम्हें भागने देती हूँ अपने पीछे-पीछे।
क्यों भागूँ मैं तुम्हारे पीछे,
मैं जानती हूँ
तुम मेरे सामने होगे जब मुझे तुम्हारी ज़रूरत होगी।
तुम अलोप हो जाओगे,जब मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं होगी
मैं जानती हूँ,
जब भी तुम्हें पुकारूँगी
सामने पाऊँगी।
तुम मेरा संचार माध्यम हो,संपर्क हो
ब्रह्माण्ड के साथ,
तुम मेरे कासिद हो
ख़त भी,
ख़त का मज़मून भी।
तुम मेरे फ़रिश्ते हो,बिना परों के,
तुम्हें कैसे मैं कर सकती हूँ प्रेम…
जैसे किसी आदमी को करते हैं।

तुम आकार में होते हो जब ऐसी ज़रूरत हो मुझे,
तुम निराकार हो जाते हो जब वैसी ज़रूरत हो मुझे।

मैं शुक्रगुज़ार हूँ इस आकार की,
जिसके ज़रिए निराकार से भेंट हो जाती है मेरी
और मैं विलय हो जाती हूँ उसमें।
मैं ही हो जाती हूँ फिर,
आशिक़ भी…
माशूका भी॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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