सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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कर दे हमारे ह़क़ में अगर ‘तू दुआ़एं माँ।
हो ‘जाएँ सब मुआ़फ़ हमारी ख़ताएं माँ।
कह-कह के मेरा लाड़ला हँसकर पुकार ना।
आती हैं याद’ अब भी वो तेरी सदाएं माँ।
तेरी हर एक याद है वाबस्ता क़ल्ब से।
यादों को तेरी कैसे भला हम भुलाएं माँ।
फ़ुरक़त में तेरी कैसे गुज़रते हैं रोज़ो शब।
हम ह़ाल अपने क़ल्ब का किसको सुनाएं माँ।
यह सोचते हैं दिल में बसाने के बा वजूद।
तस्वीर तेरी और कहाँ पर सजाएं माँ।
कुछ रंग है न नूर, न ममता की गोद अब।
तेरे बग़ैर कैसे यह जीवन बिताएं माँ।
इक यह ‘ही आर्ज़ू है हमारी ‘फ़राज़’ बस।
क़दमों में तेरे शीष हमेशा झुकाएं माँ॥