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दिव्य प्रकाश

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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हम राह भटक रहे हैं तो
वह हमें राह दिखाते हैं,
क्योंकि ज़िन्दगी के इस अंधेरे में
वही दिव्य प्रकाश है।

वह पुनीत व पावन है
वही गंगा की अमृत धारा है,
वह हमारे लिए भक्ति है, पूजा है
वही दिव्य प्रकाश है।

ईश्वर भी जिनकी करता हो पूजा
कोई नहीं और दूजा,
गुरु ही हमारे परबम्हा, गुरु दीनानाथ है
वही दिव्य प्रकाश है।

बिन गुरु के ज्ञान नहीं,
फिर तू क्यों भटक रहा है ?
गुरु की शरण में आजा,
वही दिव्य प्रकाश है॥