पुस्तक समीक्षा….
समीक्षक-यतीन्द्र नाथ राही, भोपाल (मध्यप्रदेश)
‘ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥’
हे प्रभु, संसार के सभी प्राणी सुखी रहें, सभी प्राणी रोग आदि कष्टों से मुक्त रहें, संसार के सभी प्राणियों का जीवन मंगलमय हो और संसार का कोई भी प्राणी दुखी ना रहें। प्रभु ऐसी मेरी आपसे प्रार्थना है।
‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।’
अर्थात, शरीर ही सारे कर्तव्यों को पूरा करने का एकमात्र साधन है। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना बेहद आवश्यक है। इस अनमोल शरीर की रक्षा करना और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है।
स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज की नीव-रीढ़ है। व्यक्ति की सम्मुन्नति से परिवार, समाज की उन्नति है, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का मुख्य कारण आप तन, मन, धन से स्वस्थ्य रह सकेंगे। एक रुग्ण व्यक्ति स्वयं के साथ परिवार और देश के लिए भार स्वरूप हो जाता है। इससे राष्ट्र को भी व्यक्ति के रखरखाव में खर्च वहन करना पड़ता है। इस पुस्तक में यही प्रयास किया गया है कि व्यक्तिगत रूप से स्वस्थ रहकर स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र सम्मुन्नत बन सके।
प्रस्तुत पुस्तक ‘स्वस्थ और सुखी जीवन के अनमोल सूत्र’ (मंजुल पब्लिशिंग हाउस) में १२ अध्याय हैं, जिनमें एकल द्रव्य, व्याधियां, मानसिक रोग, स्त्री, पुरुष, बाल रोग, स्वस्थ्य जीवन जीने के सूत्र, ऋतु चर्या, दिनचर्या, आयुर्वेद चिकित्सा, त्रय स्तम्भ, कोरोना से सम्बंधित जानकारी और अहिंसा यह खंड इस पुस्तक का प्राण है। उपरोक्त आधार पर यह पुस्तक निःसंदेह बहुत अधिक जनोपयोगी और लाभप्रद होगी।
चिकित्सा शास्त्र अत्यंत प्रगतिशील और नित्य नई खोजों में संलग्न रहता है। इसको अद्यतन करना दुरूह कार्य है, पर इस पुस्तक में लेखकों द्वारा जितना भी अधिकतम समायोजित कर जानकारी देने का प्रयास किया गया है, जो जनसामान्य के लिए लाभकारी होगी, यह प्रयास किया गया है।
पुस्तक के लेखक और संपादक क्रमशः डॉ. अरविन्द जैन एवं डॉ. शैलेष जैन बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं। पुस्तक जानकारी युक्त व संग्रहणीय है, ऐसी आशा करता हूँ।